Book Title: Devki Shatputra Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 5
________________ (४) जाव उदार ॥ सा ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ३ ॥ ॥दोहा॥ ॥ मुनि प्रत्ये प्रतिलानीने, निरखी मुनि दीदार ॥ मनमां संशय उपनो, ते सुणजो सुविचार ॥१॥ वात ए अचरज सारखी, मुखशुं कही न जाय ॥ कह्या विण खाद न नीपजे, विण कयु केम रहेवाय ॥२॥देवकी एम मन चिंतवी, प्रणमी बे कर जोगी ॥साधु प्रत्ये पूबती हवी, आलस अलगुं बोमी॥३॥ ॥ ढाल बीजी॥ ॥ राग गोमी ॥ मृगापुत्रनी देशी॥ ॥ मुनिवर नगरी छारिका जी रे, बार जोयणने मान ॥ कृष्ण नरेसर राजीयो जी रे, जेहनी त्रण खंग श्राण ॥ मुनीसर एक करुं अरदास ॥१॥ ए श्रांकपी ॥ बहोतेर क्रोम घर बाहेर जे जीरे, मांहे जे साठ करोग ॥ लोक बहु सुखीया वसे जी रे, माहे राम कृष्णनी जोम॥ मु॥२॥ लाख क्रोमांरा धणी वसे जी रे, नयरीमां बहु दातार ॥ माहरे पुण्य तणे उदये जी रे, मुनिवर आव्या त्रीजी वार ॥मु॥३॥वमीय पुण्या ताहरी जी रे, एम बोल्या मुनिराय ॥ देवकी मनमां जाणीयुं जी रे, एहने खबर न काय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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