Book Title: Devki Shatputra Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 4
________________ (३) वली आव्या दोय अणगार ॥ सा ॥ १०॥ देवकी राणी मन चिंतवे जी, जूली गया अणगार ॥ वमीय पुण्यामाहरीजी,जूले आव्या पुसरी वार ॥ सा ॥ ११॥ सात आठ पग सामी जश्ने जी, लली लली लागेजी पाय॥श्राज कृतारथ हुँ थजी, मुनिवर धस्या घर पाय ॥सा ॥ १२ ॥ मोदक थाल जरी करी जी, वहोराव्या उसरी वार ॥ कृष्ण जिमण तणा लावीने जी, हैयडे हरष अपार ॥ सा ॥१३॥ जाताने वली पोहोंचावीया जी, मुनिवर रूप अगा. ध॥ थोडीसी वार हु जिसें जी,त्रीजे संघाडे श्राव्या साध ॥ सा ॥ १४ ॥ देवकी तव राजी हुक्ष जी, मन मांहे उपनो विचार॥ थाहार नवि मल्यो एहने जी,के नूले आव्या अणगार ॥सा॥१५॥चूल्यानुं तो कारण ए नहीं जी, दीसंता महोटा अणगार ॥ तीसरी वार ए श्रावीयाजी, नहीं ए तो साधु श्राचार ॥ सा ॥ १६ ॥ रूप कला गुणे आगला जी, दीसंता सम आकार॥ पहेलां जो एहने पूढगुं जी, तो नहीं ले श्रम घर आहार ॥ सा ॥ १७॥ मोदक थाल जरी करी जी, वहोराव्या तीसरी वार ॥ कृष्ण जिमण तणा लावीने जी, देवकी मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 50