Book Title: Devki Shatputra Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 34
________________ (३३) सत्य रूप पमकोट तेमांहे समार\॥समतानाले ज्ञान गोला जरी मारशु, परिषद केरी फोज आवंती वारशू ॥ १३ ॥ राग द्वेष दोय चोर जोरावर बूटशे, पुण्य खजानो माल अमूलक खूटशे ॥ कांत्युं पीज्युं वत्स कपास ते थायशे, मन केरी मन मांहे के होश समायशे ॥ १४ ॥ पहेरी उत्साह सन्नाह पराक्रम धनुष ग्रही, स्थिरता पण वैराग के बाण पुंखी करी ॥ साहमा पहेली मुठे हणशुं ते सही, वीरजननी तुज नाम कहावीश ते वही ॥१५॥ सर्व गाथा ॥२४॥ ॥दोहा॥ ॥ वलती माता श्म कहे, जोगवो लोग संसार ॥ जुक्त नोगी हुया पली, लेजो संयमनार ॥१॥ ॥ ढाल सत्तरमी॥ ॥ मांकण मूगलो ॥ ए देशी ॥ सांजल रे मोरी माता, ए तो विषयारस फुःखदाता हे॥निज मन समजाय लो॥ मन समजाय लो मोरी माता, ए तो जनम मरण पुःखदाता हे ॥ निज० ॥१॥जेणे न कीयो धर्म लगार, ते तो पहोता नरक मकार हे॥ निज ॥ जे जे कीधां एणे संसार, ते तेहनी आवे लार हे॥ ॥ निज०॥२॥ण नव पीमा पावे, ते तो मूल कोय न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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