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24-3
अथ
श्रीदेवकीजीना षट्पुत्रनो रास.
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नववैराग्यरूप
तथा
पनुष्यना अपलदोनो संग्रह,
आ पुस्तक
रनी असारता दर्शावनारू होवार्थी सर्व मोइने भणवा वांचवा माटे उपयोगी जाणीने श्रीमुंबापुरीमां
श्रावक, भीमसिंद माणेक माटे
निर्णयसागर छापखानामां बाळकृष्ण रामचंद्रे छाप्युं.
संवत् १९६५. सने १९०९.
पोशशुद एकम.
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॥ श्रीशांतिनाथाय नमो नमः॥ ॥अथ श्रीदेवकीजीना षट् पुत्रनो रास प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥नेम जिणंद समोसस्या, त्रणे कालना जाण ॥ नविक जीवने तारवा, प्रजु बोल्या अमृत वाण ॥१॥ वाणी सुणी श्रीनेमनी, बज्या बए कुमार ॥ मात पिताने पूबीने, लीधो संयमनार॥२॥वैराग्ये संयम ली. धर्म सामग्री नीव ॥ बह बहने पारणे, प्रनु कर दी जावजीव ॥३॥ निरंतर तपस्या करे, बए महोटा अणगार ॥आज्ञा लेश नगवंतनी, करे आतम उधार ॥४॥ नेम जिणंद समोसस्या,कारिका नगरी मजार॥ एक दिन बहने पारणे,वयरागीश्रणगार॥५॥
॥ ढाल पहेली॥ ॥ वीर वखाणी राणी चेलणा ॥ ए देशी ॥
॥श्रागना ले जगवंतनी जी, बए ते बंधव सार॥ गोचरी करवाने नीकल्याजी, छारिका नगरी मकार ॥ साधुजी जले रे पधारीया जी॥१॥ ए आंकणी ॥ अनेकसेन श्रादे करी जी. बए सरिखा अण
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(२)
गार॥रूप सुंदर अति शोजता जी, नल कुबेर अनुहार ॥ सा ॥२॥त्रण संघाडे करी संचख्या जी, मुनिवर महा गुणधार ॥ ईरियासमितिए चालता जी, षट् कायने हितकार ॥ सा ॥३॥ पाडे पाडे फिरतां थका जी,गोचरीए मुनिराय ॥ मुनिवर दोय तिहां श्रावीया जी, वसुदेवजीना घर मांय ॥ साग ॥४॥देवकी देखी राजी हुजी, नले पधास्या मुनिराय ॥ सात श्राउ पग साहमा जश् जी, लली लली लागे जी पाय ॥ सा० ॥५॥ हाथ जोमीने वंदन करे जी, तरण तारण मुनिराय ॥ दरिशण दीगं स्वामी तुम तणां जी, जव नवनां पुःख जाय ॥ सा० ॥६॥ आज नली रे जागी दिशा जी, धन्य दिवस माहरो श्राज ॥ मुनिवर श्रम घर श्रावीया जी, तरण तारण जहाज ॥ सा० ॥ ७॥ मुह माग्या पासा ढल्या जी, दूधडे वूग मेह ॥आज कृतारथ हुं थ जी, आणी घणो धरम सनेह ॥ सा० ॥ ॥ मोदक थाल नरी करीजी, वहोराव्या उलट नाव ॥ कृष्ण जिमण तणा लावीने जी, देवकी हर्षित थाय ॥ सा ॥ ए ॥ जाताने वली पोहोंचानीया जी, मुनिवर गया पोल बार ॥ थोमीसी वार हु जिसे जी,
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(३)
वली आव्या दोय अणगार ॥ सा ॥ १०॥ देवकी राणी मन चिंतवे जी, जूली गया अणगार ॥ वमीय पुण्यामाहरीजी,जूले आव्या पुसरी वार ॥ सा ॥ ११॥ सात आठ पग सामी जश्ने जी, लली लली लागेजी पाय॥श्राज कृतारथ हुँ थजी, मुनिवर धस्या घर पाय ॥सा ॥ १२ ॥ मोदक थाल जरी करी जी, वहोराव्या उसरी वार ॥ कृष्ण जिमण तणा लावीने जी, हैयडे हरष अपार ॥ सा ॥१३॥ जाताने वली पोहोंचावीया जी, मुनिवर रूप अगा. ध॥ थोडीसी वार हु जिसें जी,त्रीजे संघाडे श्राव्या साध ॥ सा ॥ १४ ॥ देवकी तव राजी हुक्ष जी, मन मांहे उपनो विचार॥ थाहार नवि मल्यो एहने जी,के नूले आव्या अणगार ॥सा॥१५॥चूल्यानुं तो कारण ए नहीं जी, दीसंता महोटा अणगार ॥ तीसरी वार ए श्रावीयाजी, नहीं ए तो साधु श्राचार ॥ सा ॥ १६ ॥ रूप कला गुणे आगला जी, दीसंता सम आकार॥ पहेलां जो एहने पूढगुं जी, तो नहीं ले श्रम घर आहार ॥ सा ॥ १७॥ मोदक थाल जरी करी जी, वहोराव्या तीसरी वार ॥ कृष्ण जिमण तणा लावीने जी, देवकी मन
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(४) जाव उदार ॥ सा ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ३ ॥
॥दोहा॥ ॥ मुनि प्रत्ये प्रतिलानीने, निरखी मुनि दीदार ॥ मनमां संशय उपनो, ते सुणजो सुविचार ॥१॥ वात ए अचरज सारखी, मुखशुं कही न जाय ॥ कह्या विण खाद न नीपजे, विण कयु केम रहेवाय ॥२॥देवकी एम मन चिंतवी, प्रणमी बे कर जोगी ॥साधु प्रत्ये पूबती हवी, आलस अलगुं बोमी॥३॥
॥ ढाल बीजी॥ ॥ राग गोमी ॥ मृगापुत्रनी देशी॥ ॥ मुनिवर नगरी छारिका जी रे, बार जोयणने मान ॥ कृष्ण नरेसर राजीयो जी रे, जेहनी त्रण खंग श्राण ॥ मुनीसर एक करुं अरदास ॥१॥ ए श्रांकपी ॥ बहोतेर क्रोम घर बाहेर जे जीरे, मांहे जे साठ करोग ॥ लोक बहु सुखीया वसे जी रे, माहे राम कृष्णनी जोम॥ मु॥२॥ लाख क्रोमांरा धणी वसे जी रे, नयरीमां बहु दातार ॥ माहरे पुण्य तणे उदये जी रे, मुनिवर आव्या त्रीजी वार ॥मु॥३॥वमीय पुण्या ताहरी जी रे, एम बोल्या मुनिराय ॥ देवकी मनमां जाणीयुं जी रे, एहने खबर न काय
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॥मु०॥४॥हुँ पूर्बु श्ण कारणे जी रे, साधां न लीधो आहार ॥ माहरे पुण्य तणे उदय जी रे, मुनिवर श्राव्या त्रीजी वार ॥ मु॥५॥ मुनिवर उत्तर एम कहे जी रे, नयरीमा बहु दातार ॥ त्रण संघामाशुं नीकल्या जी रे,अमे बए अणगार॥मु०॥६॥वलतो मुनिवर एम कहे जी रे, तुं शंका मत आण ताहरे पहेला वहोरी गया जीरे, ते मुनिवर पुजा जाण ॥ देवकी लोन नहीं ले काय ॥ ए आंकणी॥७॥ देवकी मन अचरिज थयुंजीरे,ए किण माये जाया रे पुत ॥ रूप सुंदर अति शोजता जी रे, मुनिवर कामीनूत॥मु०॥॥श्रामी करीने एम कहे जी रे, सांजलजो मुनिराय ॥उत्पत्ति तुमारी किहां श्र जी रे, ते दी मुज बताय ॥ मु०॥ ए॥ कोण नयरीथी नीकल्या जी रे, तुमे वसता कोण ग्राम ॥ केहनाडगे तुमे दीकरा जी रे, कहेजो तेहy नाम ।मु०॥१०॥ नाग शेठना श्रमे दीकरा जी रे, सुलसा अमारी माय ॥ नदिलपुरना वासीयाजी रे, संयम लीधो गए नाय ॥मु॥११॥वत्रीशे रंजा तजी जीरे, बत्रीश बत्रीश दाय ॥ कुटुंब मेल्यो श्रमे रोवतो जी रे, विल विल करती माय ॥ मु० ॥ १५ ॥सर्व गाथा ॥ ३०॥
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(६) ॥ दोहा ॥ ॥ मुनिवचन श्रवणे सुणी, चिंते चित्त मकार ॥ एहवो परिवार तजी करी, लीधो संयमजार ॥ १ ॥ हाथ जोगीने विनवे, सांजलजो मुनिराय ॥ किस्या दुःखथी तुमे नीकल्या, ते दीयो मुज बताय ॥ २ ॥ 11 ara álcíl 11
॥ खम खम मुज अपराध ॥ ए देशी ॥ ॥ जातो काल न जाणता, सांजल रे बाइ ॥ रहेता महोल मकार ॥ दास दासी परिवारशुं जी, वली बत्रीश बत्रीश नार ॥ सांजल रे बाइ, म करीश मन उच्चाट || एकणी ॥ १ ॥ जगवंत नेम पधारीया ॥ सां० ॥ साधुने परिवार ॥ श्रमे जगवंतने वांदीया जी, वली सुणीयो धर्म विचार ॥ सां० ॥ म० ॥ २ ॥ वाणी सुणी वैरागनी ॥ सां० ॥ जाएयो अथिर संसार ॥ सुख जाण्यां सह कारमां जी, श्रमे लीधो संयमजार ॥ सां० ॥ म० ॥ ३ ॥ चार महाव्रत यादस्यां ॥ सां० ॥ चारे मेरु समान ॥ त्यजी संसार संयम लीयो जी, दीघो बकायने अजयदान ॥ सां० ॥ म० ॥ ॥४॥ माता मेली श्रमे जूरती ॥ सां० ॥ तजी बत्रीशे नार || सघलां वलवलतां रह्यां जी, में तो बोम
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दीयो संसार ॥ सां॥ म॥५॥ बहने पारणे ॥ सांग ॥ जावजीव निर्धार ॥ अंतर हमारे को नहीं जी, जे ए तप तणो विचार ॥ सां॥ म॥६॥ आज बहने पारणे ॥सां॥श्राव्या नयरी मकार ॥ दोय दोय मुनिवर जूजूश्रा जी, एम श्राव्या त्रीजी वार ॥सां०॥ म॥७॥ सर्व गाथा ॥४॥
॥दोहा॥ ॥ वली वली कीधी विनति, तुमे महोटामुनिराय ॥ घरमां त्रोटो श्यो पड्यो, ते दीयो मुज बताय ॥ ॥१॥ वलता मुनिवर बोलीया, तुमे सुणो मोरी माय ॥ घरमा त्रोटो जे पड्यो, ते देख तुज बताय ॥२॥
॥ ढाल चोथी॥ ॥ पुण्य तणां फल मीगं रे जाणो ॥ ए देशी ॥
॥ उंचा महोल सोहामणा, रचीया विविध प्रकार रे मा॥ तद्वद् रूपे सारखी, परणावी बत्रीशे नार रे मार ॥ पुण्य तणां फल मीग रे जाणो॥ ए आंकणी॥१॥ परणीने जब घर श्रावीया, सासुने लागी पाय रे मार ॥ तव वढूने शधि घणी जे, थापीते मुज माय रे मा॥ पुण्य॥२॥वत्रीश क्रोम सोनैया जाणो, बत्रीश रुपैया सार रे मा॥ बत्रीश बक
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नाटकनां टोला, छितणो नहीं पार रे माइ॥पुण्य ॥३॥बत्रीश मुगुट मुगुट परवारु, हेम कुंमल ने हार रे माश् ॥ एकावली मुक्तावली जाणो, कनक रयण वली सार रे मार ॥ पुण्य० ॥४॥बत्रीश हार मोती तणा, बत्रीश रतन तणा जाण रे मा॥ तीसरा चौसरा हार अने वली, एम कमग ने तुमीय जाण रे मा॥ पुण्य०॥५॥बत्रीश सोनाना ढोलीया, बत्रीश रूपाना जाण रे मा ॥ बत्रीश सिंहासन सोनानां, श्महीज कलश वखाण रे माश् ॥ पुण्य० ॥६॥ बत्रीश सोनानी कथरोटी,बत्रीश रूपानी जाण रेमा ॥ बत्रीशे वली तवा सोनाना, तिमहीज थाल वखाण रे मा ॥ पुण्य ॥७॥ हय गय रथ दास ने दासी, बत्रीश गोकुल जाण रे मा॥बत्रीश सोना रूपाना दीवा, वली पारीसा वखाण रेमा॥ पुण्य ॥७॥ बत्रीश पीठ सोना रूपानां, श्महीज घरेणां अमूल्य रे मा ।। पगे पमतां सासुए दीधां, एकसो बाणुं बोल रे मा॥पुण्या एम बए बंधवनी मली नारी, एकसो बाणुं जाण रेमाश्॥एकसो बाणुंने कति अपाणी, आगम वचन प्रमाण रे माश्॥ पुण्य०॥१०॥ एणी परे अमे सुख जोगवता, निर्गमता दिन रात रे
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माइ॥ त्रोटो तो थमने कांश न हुँतो, ए अमे बए ज्रात रे माई ॥ पुण्य०॥ ११ ॥ सर्व गाथा ॥ ६० ॥
॥दोहा॥ ॥ वारंवार एम विनवे, तुमे महोटा मुनिराय ॥ वैराग पाम्या किण विधे, ते दी मुज बताय॥१॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी॥ए देशी॥ नेम जिणंदनी में वाणी सांजली, जाएयो अथिर संसारो जी॥ काया माया रे जाणी कारिमी, कारिमो कुटुंब परिवारो जी॥१॥ मुनिवर नाखे तुं शंका मत करे ॥ ए आंकणी ॥ लाख चोराशी रे जीवायोनिमां, नमीयो अनंती वारोजी॥जन्म मरण करीने घणुं फरसीयो, न रही मणा लगारो जी॥ मुनि ॥२॥ करम नचावे रे तेम ए नाचीयो, विविध बनावी वेशो जी॥पातक कीधारे जीवे अति घणां, (पागंतरे ॥ जन्म मरणे करी बहु वेदन सही,) नवि सुएयो धर्मोपदेशो जी ॥ मुनि ॥३॥ एहवी देशना अमे सांजली, जाणी सर्व असारो जी॥बए बंधव ततखण बूजीया, लीधो संयमनारो जी॥ ॥ मुनि ॥४॥ पुण्यने जोगे रे नरजव पामीया, लेश
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(१०) धर्मनी थायो जी ॥ ए सुख जाएयां रे अमे तो कारिमां, कीधो मुगतिनो साथो जी ॥ मुनिः॥५॥ एहवां वयणां रे मुनिनां सांजली, देवकी करे विचारो जी ॥ बालक वयमां रे संयम दस्यो, धन्य एहनो अवतारो जी ॥मुनिः॥६॥ बप्पन कोमी रे माहेरी साहेबी, सामात्रण क्रोम कुमारो जी॥ दीग सघला रे माहारा राज्यमां, कोई नहीं इणे अनुहारो जी ॥मुनि०॥ ॥णे इण वयमां रे संयम थादस्यो, पाले निरतिचारो जी॥धन्य धन्य माता रे ताहरी कुखने, जाया रत्न अमूलक सारो जी ॥साधुजीना दरिशण दीगं राणी देवकी ॥ए आंकणी ॥७॥अंग उपांग रे सघलां सुंदरु, सौम्य वदन सुखशीशो जी ॥ कोली पातरां लीधां हाथमां, तनु सुकुमाल मुनीशो जी ॥ साधु ॥ए ॥ गज जेम चाले रे मुनिवर मलपता, बोले वचन विचारो जी ॥ राजकुमरनी रे दीजे उपमा, जाणे कोश् देवकुमारो जी॥साधु॥ ॥१०॥ धन्य धन्य माता रे जेणे ए जनमीया, दरशणे दोलत थाय जी ॥ नाम लीधाथी रे नव निधि संपजे, पातक पूर पलाय जी ॥ साधु० ॥११॥
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(११)
॥ दोहा॥ ॥श्रामी फरीफरी निरखीया,धन्य एहनोअवतार॥ बए सहोदर सारिखा, नहीं देखुं एहने अनुहार॥१॥
॥ ढाल ही ॥ ॥धारणी मनावे रे मेघकुमारने रे॥ए आंकणी ॥ नयणे निहाले रे राणी देवकी रे, मुनिवर रूप रसाल ॥ लक्षण गुणे करीने शोचतारे, वाणी जेहनी विशाल ॥ नय० ॥१॥ जिणे घरथी ए पुत्र नीकट्या रे, शुं रह्यो होशे लार ॥ दीसंता दीसे घj सोदामणा रे, नल कुबेर अनुहार ॥ नय० ॥२॥ एणे अनुहारे रे माहरा राजमा रे,अवर न दीसे कोय॥ जो ले तो एक माहरो कृष्ण ने रे, एम मन अचरिज होय ॥ नय० ॥३॥ सीधुं सगपण कोश् दीसे नहीं रे, माहरु हवणां जेम ॥ सूधी खबरज को नवि पडे रे, एम किम जाग्यो महारो प्रेम ॥नय॥४॥ श्रावकनो साधुने उपरे रे, होवे बे धरम सनेह ॥ में घणा दीग साधु.पूरवे रे, झुंजाग्यो केम पूरव नेह ॥ नयण ॥५॥ जातां दोग राणी देवकी रे, घणुं थक्ष दिलगीर ॥ दियतुं फाटे तेहनु अति घj रे, नयणे विबूटे नीर ॥ नय० ॥६॥ स ॥ ए॥
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( १२ ) ॥ दोहा ॥ ॥ बालपणे बोल्यो हतो, अश्मंतो अणगार ॥ श्राव जणीश बाइ देवकी, बीजी नहीं जरत मजार ॥ १ ॥ एदवा पुत्र जनम्या विना, केम थाये आणंद ॥ माहरे संशय बे घणो, ते जांगे नेम जिणंद ॥ २ ॥ देवकी मन सांसो थयो, जइ पूढं इणी वार ॥ केवलज्ञानी मन तणा, संशय जांगणदार ॥ ३ ॥ एम चिंतवी राणी देवकी, वंद श्रीजिनराय ॥ सामग्री सर्व सजी करी, हरष धरी मन मांय ॥ ४ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥
॥ हांरे लाल शीयल सुरंगा मानवी ॥ ए देशी ॥ हांरे लाल चाकर पुरुष तेमावीने, देवकी राणी बोले वाप रे लाल || खिप्पामेव जो देवाणुपिया, तुं रथ वेगो जोतराव रे लाल ॥ नेम वंदने जायशुं ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ हांरे लाल चाकर सुणी हर्षित थयो, गयो जिहां यानशाल रे लाल || तिहां जश्ने स कस्यो, रथ रुडो विसराल रे लाल || नेम० ॥ २ ॥ ॥ दां० ॥ चाल उतावली श्रति घणी, वली उपगरण हलवां जाए रे लाल || बाहिरली जवठाणशाल में, रथ उजो राखी आण रे लाल ॥ नेम० ॥ ३ ॥ हां० ॥
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॥ धोला ने माता घणा, वली बोटीसींघमीआ जाण रे लाल ॥ दीसे घणुं ए सोहामणा, एहवा वृषन तुं आण रे लाल ॥ नेम॥४॥हा॥ सरिखाने चांदी नहीं, जोवा सरख। बलदनी जोम रे लाल ॥ चाले चाल उतावली, जेहने शिंगे पुढे नहीं खोमरे लाल ॥ नेम ॥५॥हांग ॥ बलदनेजूलां शोजती, वली सोनानी नाथ रसाल रे लाल॥सोनानी नली शिंगमी, वली गले ते घूघरमाल रे लाल॥नेम ॥६॥हा॥ खेंचित सोनानी रासमी, वली सोना पहालां जोत्र रे लाल ॥ माथे ते घाल्यो सेदरो, तुंएणी परे कर उद्योत रेलाल ॥नेम०॥७॥हा॥वली ते रथ शणगारीयो, ते सूत्रे ने विस्तार रे लाल ॥ बलद जुगतशुं जोतरी, लाव्यो उवाणशाला मकार रे लाल ॥ नेम ॥७॥ हांग॥ न्हा धोश्मजान करी, वली पहेस्या नव नवा वेशरे लाल माणिक मोती मुडिका,वली घरेणां हार विशेष रे लाल ॥ नेमण ॥ ए॥ हांग ॥ श्राडंबर करी श्रति घणो, आवी बेग रथ मांय रे लाल ॥ आगल बांधी शीकरी, रथ बेठी दृढ थाय रे लाल ॥ नेमण ॥ १०॥ हां ॥ साथे ते लीधी सादेलीयां, वली चाल्या ते मध्य बजार रे लाल ॥चतुर ते बेगे सांघमी,
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(१४) ए गृहस्थोनो आचार रे लाल ॥ नेम ॥ ११॥
॥दोहा॥ ॥नगर मध्ये थश्नीकल्या,साथे बहु परिवार नेम जिणंद जिहां समोसस्या, चाव्या तिणहीज गर॥१॥
॥ ढाल श्रामी॥ ॥धजा ने पताका हो दीग राणी देवकी रे,प्रनु अतिशयनी वात॥विनय तोश्रादरी होउत्तम साधुनो रे, ए तो जगत विख्यात॥१॥सांसो निवारो हो प्रजु नेमजी रे ॥ ए आंकणी ॥ रथने उपरथी हो हेठे उतरी रे, दासीई ने परिवार॥पायने अणुयाणे हो राणी देवकी रे, साचवी अनिगम सार ॥ सांसो ॥२॥देश प्रदक्षिणा हो वांद्या नेमजी रे, पांचे अंग नमाय ॥ दो गुमा दो ढिंचण हो नूतले थापीने रे, मस्तक चूंश लगाय ॥ सांसो ॥३॥ गए मुनि देखी हो संशय उपनो रे, हुँ एम थरे उदास ॥ सांसों तो निवारण हो कारण श्रावीया रे, नेम जिणेसर पास ॥ सांसो ॥४॥ गुण अनंता हो प्रजुजी तुम तणा रे, जो होये जीनकी अनेक ॥ राग केष बेहुने होस्वामी निवारीया रे, सहु माथे मन एक ॥सांसोग ॥५॥धन्य दिवस हो धन्य वेला घमीरे,नेट्या तरण
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(१५) तारण जहाज ॥ मनना मनोरथ हो प्रजुजी माहरा रे, देखी रे रह्या डो महाराज ॥ सांसो ॥६॥
॥दोहा॥ ॥दे प्रदक्षिणा वांदता, बोल्या श्री जिनराय॥ जिण कारण तुमे आवीया, ते सुणजो चित्त लाय ॥१॥ नेम कहे सुणो देवकी, सांसो उपनो तुऊ॥ बए मुनिवर देखीने, तुं पूबण आवी मुङ ॥२॥ तहत्ति कहे तव देवकी, जोमी दोनुं हाथ॥हा स्वामी सांसो पड्यो, ते नांगो जगनाथ ॥३॥ एबए ताहरा दीकरा, तुं शंका म करे काय ॥ बए वोरण जे श्रावीया, तेहनी तुं हे माय ॥ ४॥
॥ ढाल नवमी॥ ॥ रुडे रूप रे पुत्र तुमारा राणी देवकी ॥ए शांकणी ॥ तीन संघाडे तुम घर मुनिवर, आव्या त्रीजी वर ॥ ते देखीने सांसो पमीयो, बए एकण अनुहार ॥ रुडे ॥१॥ नाग शेठ सुलसा घर वधीया, म करो शंका लगार ॥ देवकी राणी ताहरा जनम्या, नल कुबेर अनुहार ॥ रुडे० ॥२॥ नहीं निश्चे सुलसाना जाया, मानो वात अमारी॥ उदर तमारे ए बालोट्या, नहीं को मात अनेरी ॥ रुडे० ॥३॥ किण
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विध पुत्र अमारा प्रजुजी, जोमी दोनुं हाथ ॥ ए जायानुं मरम न जाएं, ते नाखो जगनाथ ॥ रुडे० ॥ ॥४॥ जीवयशा ताहरी नोजाइ, बोली ते अणविमासी ॥ अश्मंतो ऋषि श्रावंतो देखी, तेहनी कीधी हांसी ॥ रुडे० ॥५॥ धन जोबन ने मदनी माती, बोली ते खोटी रीत॥ श्रावोने अश्मंता मुनिवर, मलीने गाश्ये गीत॥ रुडे॥६॥मूरखमी गीतानी मानी, खबर पडे शी थारी॥ देवकी गरल जे सातमो थाशे, ते तुज कुल क्ष्यकार ॥ रुडे० ॥७॥ जरा. संधनी तुं थर पुत्री, कंस तणी धणीयाणी ॥ मारूं बोट्युं पालुं न फरे, तें ते वात न जाणी ॥ रुडे० ॥ ॥॥ एहवां वचन सुणीने काने,कंसने जा पुकारी ॥अश्मंते ऋषिए वचन कह्यां जे, ते मुजने पुःखकारी ॥ रुडे ॥ ए॥ तेह वयण सुणीने कंसे, कीधो एक उपाय ॥ वसुदेव पासे बोलज लीधो, देवकी गर्न जे थाय ॥ रुडे० ॥ १०॥ ते बालक तो श्रम घर वाधे, तव माने वसुदेव ॥ कंस राय तिहां राजी हुई, सुख नोगवे नित्यमेव ॥ रुडे ॥ ११ ॥ जे जे गर्न धरे ले देवकी, तव तिहां ते कंस राय ॥ सात चोकी ते उपर मूकी, कपटे खेले दाय ॥ रुडे० ॥ १५ ॥
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(१७)
॥दोहा॥ ॥ तिण काले ने तिण समे, नदिलपुर के गाम ॥ नाग शेठ ते तिहां वसे, सुलसा घरणी नाम ॥१॥ धण कण कंचण घणो, कतिणो नहीं पार ॥ पण मृतवछा ते सही, शोचे हृदय मकार ॥२॥ तव ते बोरु कारणे, हरिणगमेषी देव ॥ आराधे ते एक मने, नित्य नित्य करती सेव॥३॥
॥ ढाल दशमी॥ केटले काले सेवा करतां, तुगे देव तिहां श्राय रे मार ॥ किण कारण तुंमुजने सेवे, शानी जे तुज चाय रे मा॥१॥ पुण्य तणां फल मीगंरे जाणो ॥ ए आंकणी ॥ वलती सुलसा एणी परे बोले, जोमी दोनुं हाथ हो देवा ॥ जिण कारण में तुजने श्राराध्यो, ते सुणजो तुमे नाथ हो देवा ॥ पुण्य० ॥२॥ धन तो माहरे नरीया नंमारा, तेहनी गरज न काय हो देवा॥ मूवा बालक जीवता थाय, ते मुज आपो वाय हो देवा ॥ पुण्य० ॥३॥ वलतो देवता एणी परे बोले, तुं सांजल मोरी वाय रे मा॥ मूवा बालक जीवता होवे, ते मुज शक्ति न कांय रे मा ॥ पुण्य०॥४॥ वलती सुलसा एणी परे बोले, सांजल
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(१७) मोरा नाय हो देवा ॥ मूवा बालक जो तुजथी न जीवे, तो द्यो अवर उपाय हो देवा ॥ पुण्य०॥५॥ कोथलीमा जे नाणुं घाले, तेटवू ते नीकलाय रे मा ॥ पूरव पुण्यना संच जो होवे, तो सवि वातुं थाय रेमा॥ पुण्य ॥६॥ वलती सुलसा एणी परे बोले, सांजल तुं चित्त लाय हो देवा ॥ तूठगे पण अणतूग सरखो, माहारी गरज सरी नहीं कांय हो देवा ॥ पुण्य ॥ ७॥ वलतो देवता एणी परे बोले, तुमे सुणजो चित्त गय रे मा ॥ ततकालना जे बालक जनमे, ते तुजने देशुं लाय रे मा॥ पुण्य० ॥ ७ ॥ वलती सुलसा एणी परे बोले, सांजल तुं सुखदाय हो देवा ॥ हुं शुं जाणुं तुं केहना लावे, ते मुजने न सुहाय हो देवा ॥ पुण्य ॥ए॥ कंस राय जे मारण माग्या, देवकी केरा नंद रेमाश् ॥ ते तुऊने हुं श्राणी देश, करी देशां आनंद रे माश् ॥ पुण्य० ॥ १०॥ सुलसा सुणीने राजी हुश्, देव गयो निज गण रे मा॥अवधिज्ञाने विचारी जोवे, अनुकंपा मन आण रे माश् ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ सर्व गाथा ॥ १३१ ।।
॥दोहा॥ ॥ देवकी ने सुलसा तणा, गर्न समकाले कीध ॥
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( १७ ) जनमसमय जाली करी, तुज कुमरा तेणे लीध ॥ १ ॥ ते लेइ सुलसाने दीया, कुमर श्रति सुकुमाल ॥ मृतक बालक सुलसा तणा, ते देव लीये ततकाल ॥ २ ॥ ते लेइ तुज पासे ठव्या, बए एपी परे जोय ॥ निद्रा मूकी गर्भ पालट्या, ते नवि जाणे कोय ॥ ३॥ मृतक बालक कंसे लीया, ते जाणे सहु कोय ॥ बए कुमर महोटा थया, जणी गणी पंकित होय ॥ ४ ॥ बत्रीश बत्रीश कन्या वस्त्रा, एक लगन सुखकार ॥ पंच विषय सुख जोगवे, दोगुंदक अनुहार ॥ ५ ॥ वाणी सुणी वैरागथी, बए लीयो संयमनार ॥ ए बए पुत्र बे ताहरा, तुं शंका म कर लगार ॥ ६ ॥ तव शंका सहुए टली, वांदी नेम जिणंद ॥ साधु समीप या सही, आणी घणो आणंद ॥ ७ ॥ ॥ ढाल गीरमी ॥
॥ धन्य धन्य जे मुनिवर ध्याने रम्या जी ॥ ए देशी ॥ ॥ देवकी ते श्रावी नंदन वांदवा जी, हैयडे उल्लसी हरषित थाय रे || निज वारुखाने देखी करी रे, जेम नव प्रसूता गाय रे ॥ देव० ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ देह प्रफुलित तांति घणी जी, रोम रोम उलसी तन सार रे ॥ त्रटके तो त्रुटी कश कंचुया तणी रे,
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(२०) स्तने विबूटी सुधां केरी धार रे ॥ देव ॥२॥बल हैया मांहे तो मावे नहीं रे, जोतां लोचन तृप्ति न थाय रे ॥ तन मन रोमांचित हैयहूं उबस्युं रे, नजर न पानी खेंची जाय रे ॥ देव ॥३॥ एह सहोदर दीठा सारिखा रे, देवकी तो रही सामी निहाल रे॥ नेत्र जरीयां बांसुमां थकी रे, जाणे त्रटी मोती केरी माल रे॥देव०॥४॥वली निज अंगजने निरखी करी जी, उबस्यो अति घणो घणो नेह रे॥घर जातां पग साहामा वहे नहीं जी, फरी फरीने वांदे तेह रे ॥ देव ॥५॥वांदी लगवंतने नले नावशुंजी, दीग बेग ने उन्नाय रे ॥ श्रधन्य अपुण्य अकृत चिंतवे रे, मोहवशेश्री पुःख थाय रे ॥ देव० ॥६॥ घरे श्रावीने राणी देवकी जी, आर्त रोऊ मन ध्याय रे॥ एहवे अवसरे कृष्णजी आवीया रे, माताना वांदवा पाय रे ॥ देव ॥ ७॥ सर्व गाथा ॥ १४५ ॥
॥दोहा॥ ॥ कृष्णे पूरथी देखीया, श्राज खरी दिलगीर॥ पगे लाग्यो जाएयो नहीं, नयणे करे तस नीर ॥१॥ कहो माता किणे उहव्या, केणे लोपी तुज कार ॥ क्ली वली कृष्णजी विनवे, पण उत्तर न दीये बगार
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(२१) ॥२॥हाथ जोमी माधव कहे, सांजलो मोरी माय॥ तुजने वात कह्या विना, गरज न सरशे काय ॥३॥
॥ ढाल बारमी ॥ ॥ रहो रहो राजेसरा केसरीया लाल ॥ ए देशी॥ हुं तुज आगल शी कहुँ कानैया लाल, वितक फुःखनी वात रे ॥ गिरधारी लाल ॥ फुःखणी नारी घणी ॥ कानैया लाल ॥ पण कुःखणी ताहरी मात रे ॥ ॥गिणाहुंगाए शांकणी॥१॥जनम्या में तुज सारिखा ॥का॥ एकण नाले सात रे ॥ गि०॥ एके दुलराव्यो नहीं ॥ का० ॥ गोद लेश क्षिण मात रे ॥ गि॥ हुं० ॥२॥ ए बए वाध्या सुलसा घरे॥ का० ॥ हुँ नजरे श्रावी देख रे॥ गि॥वात कही प्रजु नेमजी ॥ का० ॥ जिणमें मीन न मेष रे ॥ गि० ॥ हुं० ॥ ॥३॥बए तो नाग घरे उबस्या॥का॥सुखसानी पूरी श्राश रे॥गि०॥राजकि डोमी करी ॥का ॥ दीक्षा लीधी प्रजु पास रे ॥ गि०॥ हुँ ॥४॥ए तो हवे अलगा रह्या ॥ काम् ॥ एक श्राव्यो तुं महारे पास रे॥गि ॥तुजने में नवि साचव्यो॥का ॥ माहरे श्राव्यो तुं बहेमास रे ॥गि०॥हुं०॥५॥ सोल वरस अलगो रह्यो । का० ॥ तुं पण यमुनाने
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(२२) तीर रे ॥ गि० ॥ नंद यशोदाने घरे ॥ का॥ नाम धरावी आहीर रे ॥ गि ॥ ॥६॥ सोल वरस बानो वध्यो ॥ का० ॥ पड़ी उघड्यां तहारां नाग्य रे ॥ गि ॥ जल यमुनामें जाश्ने ॥ का ॥ तें नाथ्यो काली नाग रे ॥ गि०॥हुं॥७॥बालपणाना बोलमा ॥ का ॥ में एके न पूरी श्राश रे॥ गि॥ श्राशा विलूकी हुं रही ॥ का० ॥जारे मुश्सवा नव मास रे ॥ गि० ॥ हुँ ॥ ७ ॥ हलक न दीधो हालरो ॥का॥ पालणीए पोढाय रे॥गि ॥ हालरुया गावा तणी ॥ का ॥ माहरी होंश रही मन माय रे ॥ गि० ॥ हुं० ॥ ए ॥ जगमां मोहटी मोहनी ॥ का ॥ उदय थ माहरे श्राज रे ॥ गि० ॥ ते जीव जाणे माहरो ॥ का ॥ के जाणे जिनराज रे ॥ गि० ॥ हुं० ॥ १० ॥ आंगणीए न कर घमी ॥ का०॥ आंगलीए वलगाय रे ॥ गि ॥ साही साही ना मिल्यो ॥ काम् ॥ हुँ जाचण केम कराय रे ॥ गि०॥ हुं०॥ ११॥ कीधां याद आवे नहीं ॥का॥ में केश करम कठोर रे॥ गि० ॥ नवांतरे कीधां दशे ॥ का ॥में किहां पाप अघोर रे॥गि ॥ हुँ॥१२॥ के पंखीमाला त्रोमीया ॥ का ॥ के बाल विडो
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(२३) हां कीधरे॥गि०॥जीवजयणा कीधी नहीं॥का॥ के कूमां थाल में दीध रे ॥ गि० ॥ ॥ १३ ॥ में जीवाणी ढोलीयां ॥ का० ॥ के में मारी जू लीख रे ॥ गि ॥ तमके जीव में शेकीया ॥ का ॥ बहु जीव कीधो संहार रे ॥ गि॥ हं०॥ १५॥ कग्नि कर्म ते में कीयां ॥ का॥ के तोमी सरोवरपाल रे ॥गि ॥बाणे विंबी चांपीया ॥ का॥ न करी में शीलसंजाल रे ॥ गि० ॥ हुं० ॥ १५ ॥ पांतिनेदज में कीया ॥ का०॥ ईर्ष्या निंदा शराप रे ॥गि॥ कामनी गर्नज गालीया॥का॥के में कीधांप्रौढां पाप रे ॥ गि०॥ ॥ १६ ॥ अणगल नीर में वावस्यां ॥ का॥ के में पाड्या अंतराय रे ॥ गि०॥ के साधुने संतापीया ॥ का० ॥ ते फल श्राव्यां धाय रे ॥ गि ॥ ढुंग ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ १६५ ॥
॥ दोहा ॥ ॥ मातावयण श्रवणे सुणी, तव ते यादव राय ॥ हाथ जोमी विनये करी, बोले मधुरी वाय॥१॥ पूर्व संबंधी देवता, तेमावु मोरीमाय॥ ताहरा मनोरथ पूरवा, करीश हुँ एह उपाय ॥२॥
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(२४)
॥ ढाल तेरमी॥ ॥ चंबाउलानी देशी ॥वलता कृष्णजी एम कहे हो, माजी म करो चिंता लगार ॥ जेम तुम नंदन थायशे हो, तिम हुं करीश विचार॥ तिम हुँ करीश विचार रेमाश्, मनमें चिंताम करो कांश॥देजो मुऊने जलीय वधार, जब जनमे महारोन्हानो ना॥जी माताजी जी ॥१॥माताचरण नमी करी हो,श्राव्यो पौषधशाल॥ हरिणगमेषी देवता हो, मन समस्यो ततकालमन समस्यो ततकाल मुरारी, अहमनक्तज चित्तमें धारी॥देवता यावी कहे तिण वारी, एडवो कष्ट कीयो केम जारी॥जो कानाजी जी॥शादेव कहे कृष्णजी प्रत्ये हो,केम तेमाव्यो मुज॥कारज कहो मुजने सही हो, जे कर, होये तुज॥जे करवु होये तुज काम जारी, श्रमे बलं तुजने उपगारी ॥आदेश यो श्रमने सुखकारी, काम कहोने ते शुज सारी ॥ जी कानाजी जी ॥३॥ देव प्रत्ये कृष्णजी कहे हो, सुणो तुमे चित्त धार ॥ लघु बांधव मागुं सही हो, कृपा करो हरिणगमेषी सार॥कृपा करो हरिणगमेषी सारी, होवे बालक लीलाकारी ॥ सुख पामे ज्युं मात श्रमारी, जादवकुल माहे जयजयकारी॥
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(२५) जी देवाजी जीडे॥४॥ देवकी नंदन श्राठमो हो, जेम थाये तेम जेम ॥ इण कारण तुम समरीयो हो, उर नहीं कोश्प्रेम ॥ उर नहीं कोश्प्रेम हमारे, बालकनी लीला चित्तमें धारे ॥ एह स्त्रीने होये जग आधारे, पुत्रने देखे माता जिवारे ॥ जी देवाजी जी ॥५॥अवधिज्ञान प्रयुंजीने हो, देव कहे तेणी वार ॥ देवलोकथी चवी करी हो, देवकी कुखे अवतार ॥ देवकी कुखे अवतारज थाशे, सवा नव मास जेवारे जाशे ॥ पुत्र जनम्याथी सुख पाशे, दरिशण जेहनो सहुने सुहाशे ॥ जी कानाजी जी ॥ ६॥ जरजोबन वय पामशे हो, पुत्र होशे महा महोटो। पण दीदा लेशे सही हो, वचन नहीं अम खोटो ॥ वचन श्रमारो खोटो न था,माताने यावी दीध वधा३॥ माता हियडे हर्ष न मावे, कृष्णजी मनमा आनंद पावे ॥ जी माताजी जी ॥७॥ वलता कृष्णजी एम कहे हो, सांजलजो मोरी मा॥देवरूप कुंवर होशे हो, देजो मुज वधाइ ॥ देजो मुज वधाइरे माता, पुत्र होशे तुम जगत विख्याता॥ मनमां राखो तमे सुखशाता, माताजी थाशे मुज लघु जाता॥जी माताजी जी ॥ ॥ वयण सुणी कृष्णजी तणां
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(२६) हो, उपन्यो मन श्राणंद ॥ वलती देवकी एम कहे हो, तुं तो मुज कुलचंद ॥तुं तोमुज कुलचंद रे नाश, माहरी चिंता पूर गमाश् ॥ कृष्णे संतोषी निज माश, पली सुख विलसे आवासे जा॥ जी कानाजी जी ॥ ए॥ एणे अवसर देवथी चवी हो, देवकी उदर उपन्न ॥ सिंह सुपन देखी करी हो, मनमां दुश् सुप्रसन्न ॥ मनमां हुए सुप्रसन्न सोनागी, जा पीयुने पूबवा लागी॥पीयु कहे सुण तुं वमनागी, पुत्र होशे तुम गुणनो रागी॥जी माताजी जी ॥१०॥ तेह वचन देवकी सुणी हो, सुखमां गमावे काल॥ सवा नव मासे जनमीयो हो, कुंअर अति सुकुमाल ॥ कुंअर अति सुकुमाल देखीने, नाम दीयो गजसुकुमाल हरषीने ॥ हरष पामे देवकी निरखीने, रीके सहु कोश् गुण परखीने ॥ जी कुंअरजी जी ॥११॥ हवे माता निज पुत्रशुं हो, रमे रमाडे बाल ॥ मनना मनोरथ पूरवे हो, हाथो हाथ विसाल ॥ हाथो हाथ विसाल रे बाइ, रमाडे माता हरख उमाश्॥ हालरीमां दूलरीमा गावे, दिन गमावे राजी थावे ॥ जी कुंअरजी जी ॥ १५ ॥ गजसुकुमाल महोटो थयो हो, बहु उबरंगे नणाय ॥ रूप विचदाण जाणं ने
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(७)
हो, सोमल घर मनाय ॥ सोमल घर विवाह मनायो, देवकी माता आणंद पायो ॥ दिन दिन वाधे तेज सवायो, जातो न जाणे काल गमायो ॥ जी कुंअरजी जी ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥ १० ॥
॥दोहा॥ ॥णे अवसर श्रीनेम जिन, करता उग्र विहार॥ नविक जीव प्रतिबोधता, बोमवता संसार ॥१॥एक दिन नेम पधारीया, सोरठ देश उदार ॥ छारिका नयरी आवीया, नंदन वनह मकार ॥२॥ श्राज्ञा लश् वनपालनी, उतरीया तिणे गर ॥ संयम तपे करी जावता, बहु गुण तणा नंमार ॥३॥
॥ढाल चौदमी ॥ ॥राणपुरो रलीश्रामणो रे लाल ॥ए देशी॥
॥ नेम जिणंद समोसस्या रे लाल, निर्लोजी निर्माय रे॥ नविकजन ॥ दरशन दीठे तेहy रे लाल, नव नवनां दुःख जाय रे॥॥॥नेम जिणंद समोसख्या रे लाल ॥ ए आंकणी ॥ सहस बढारे साधुजी रे लाल, साधवी चालीश हजार रे ॥ न० ॥ निज आणाने मनावतारे लाल, शासनना शिरदार रे॥जण ॥ ने ॥२॥ चोत्रीश अतिशये विराजता रे लाल,
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( ज) पांत्रीश वाणी सार रे ॥ ज० ॥ शुज लक्षण सोहामणां रे लाल,आप ने एक हजार रे ॥०॥ने॥३॥ प्रजु दर्शन देखी करी रे लाल, हरषे वांद्या पाय रे॥ जण ॥वनपालक उतावलो रे लाल, कृष्ण पासे ते जाय रे॥ ज० ॥ ने ॥४॥ वनपालक श्रावी करी रे लाल, जोमी दोनुं हाथ रे ॥ ज० ॥ कृष्ण नरेसरने कहे रे लाल, सांजलजोनरनाथ रे ॥ सुगुणी जन ॥ ने ॥५॥ दरिशण जेहनुं बता रे लाल, करता मनमें चाह रे॥न॥पीयरीया कायना रे लाल, श्रीनेमि जिनराय रे ॥ न ॥ ने० ॥६॥ नाम गोत्र सुणी रीता रे लाल, धरता मन अनिलाष रे ॥ ज० ॥ ते श्रीनेम पधारीया रे लाल, वनपाले एम दाखरे ॥०॥ने॥७॥दीजीये देव वधामणी रे लाल,पामी मन श्राणंद रे ॥ ज०॥ तेह वयण सुणी करी रे लाल, तव हरख्या गोविंद रे ॥ न ॥ ने ॥ ७॥ आसनथी तव उठीयो रेलाल, सात आठ पग सामो जाय रे॥ज०॥प्रजुने कीधी वंदना रे लाल, पनी बेगे निज गय रे ॥ न० ॥ ने ॥ ए॥ कृष्णे दीधी वधामणी रे लाल, बोले मधुरी वाण रे ॥सुगुणी जन ॥ सोनैया दीधा सामटा रे लाल, साढी बारे लाख
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(ए) रे॥सु०॥ने॥१॥ वनपालकने विदाय करी रे लाल, पड़ी चाकरने तेमाय रे ॥ सु ॥ कौमुदी र वजामीने रेलाल, सांजली सहु सज थाय रे॥सु॥ने॥ ॥१९॥ उठो रे लोको सिताबशं रे लाल, रखे अवेला थाय रे ॥ सु०॥ एक घमी दर्शन विना रे लाल, क्षण लाखीणो जाय रे ॥ सु ॥ ने ॥ १२॥ कोश कहे द रिशण देखशुं रे लाल, कोइ कहे सुणशुं वाण रे ॥ सु॥ कोइ कहे संशय बेदश्यां रे लाल, कोश कुतूहल जाण रे॥ सु०॥ने ॥ १३॥ स ॥ १६॥
॥ दोहा॥ ॥ एम विविध परे चिंतवी, बहु नारीनां वृंद ॥ स्नान करी शिणगारीयां, मनमां धरी आणंद ॥१॥ नगर मध्ये थश्नीकल्यां, चढी हय रथ गयंद ॥ पंच अनिगम साचवी, वांद्या नेम जिणंद ॥२॥
॥ ढाल पंदरमी ॥ ॥श्रीसुपास जिनराज,तुं त्रिजुवन शिरताज॥ए देशी॥
॥ सोरठ देश मकार, सारिका नगरी सार, श्राज हो वसुदेव रे राजा राज्य करे तिहां जी ॥१॥ नाश् दशे दशार, बलन कान कुमार, थाज हो दीपे रे सोहागण राणी देवकी जी ॥२॥ तस लघु पुत्र
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(३०) रसाल, नामे गजसुकुमाल, आज हो मात पिताने वालहो कुंवर प्राणथी जी॥३॥ सुणी थाव्या नेम जिणंद,साथेसुर नर वृंद,श्राज हो सेव्या रे सुखदायक खामी समोसस्या जी॥४॥जादव बहु परिवार, मन धरी हर्ष अपार, आज हो कृष्णादिक सहु उबरंगे जया जी ॥ ५॥ करी बहु अति माम, वंदन नेमि खाम, आज हो गजसुकुमाल ते साथे वेश्ने जी॥६॥ विधिशुं वांदी जिनपाय, तव ते दोनुं नाय, श्राज हो उचित थानक तिहां आवी बेग सही जी ॥७॥ तव ते जिन हित श्राण, जाषे मधुरी वाण, बाज हो धर्मकथा कही बहु विस्तारशुं जी॥॥देशना सुणी तेणी वार, बज्यां सहु नर नार, श्राज हो वांदी रे व्रत ग्रहीने निज निज घर गया जी ॥ ए॥ वाणी सुणी कृष्ण राय, वांदी जिनवर पाय, आज हो जेम आव्या तेम निज नगरे गया जी॥१०॥स॥२०॥
॥दोहा॥ - ॥ जिनवाणी श्रवणे सुणी, बज्यो गजसुकुमाल ॥ घरे आवी माता जणी, बोले वचन रसाल ॥१॥
॥ ढाल सोलमी॥ ॥नदी यमुनाके तीर उडे दोय पंखीयां ॥ए देशी ॥
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(३१) वाणी सुणी जिनराज तणी काने पमी रे मामी॥ अंतर हैयमानी शांख माहेरी उघमी ॥ वलती माता बोले हुँ वारी ताहेरी रे जाया ॥ सुणी ए प्रजुजीनी वाणी पुण्या पूरी ताहरी ॥१॥ कही श्री जिनराज ते साची में सर्दही रे माश, लागी मीठी जेम साकर फूध ने दही ॥ दीजे अनुमति मुज संयम बेशु सही, न करो श्राज्ञानी ढील पुत्रे ऐसी कही ॥२॥ श्राज सनामां जैनधर्म वखाएयो जिनवरे, मुजने रुच्यो तेह बेह उखनो करे ॥ ए संसार असार के बार समो लख्यो, जन्म मरण फुःखकरण जलण जाले धख्यो ॥३॥ श्री जिनमारग गरण कारण उलख्यो, ए विना अवर न कोश् सकल शास्त्रे लख्यो ॥ कारागार समान श्रागार विहार ,तजवो कोश्क वार श्राखर पहेलां पडे ॥४॥ एक श्हां अणगारपणुं सुखकार बे, माता द्यो अनुमति वात न को करवी अ॥ नंदनवचन सुणीएम जननी जलफली, हित वाणी फुःख श्राणी नाखे थर गलगली ॥ ॥५॥ वाणी अपूरव वात पुत्रनी सांजली, घणुं मूर्गगत थाय ध्रसकी धरणी ढली ॥ नांगी हाथांरी चूम माथे केश विखस्या, वली हुई उठणोपूर ध्रसकी
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(३५)
धरणी पड्या ॥ ६॥ मोह तणे वश श्राय सूरत जांखी थर, शीतल वाय सचेत थबेठी नशाकुंत्ररना मुख साहमुं रहीने जोवती, मोह तणे वश बोले माता रोवती ॥७॥तुज मुख मांदेथी वछ वाणी ए केम पमी, मादरे तुज उपर आशा अति वमी ॥ हुँ मुखथी तुज नाम न मे@ अध घमी, रे जाया तुं जीवन अंधा लाकमी ॥ ॥ चारित्र बे वत्स मुक्कर असिधारा सही,सुरगिरि तोलवो बांह के तरवो जलदहि ॥ उपामी लोहनार के गिरि चमवो वही, तुं सुंदर सुकुमाल पाले केम थिर रही ॥ ए॥ दोष बेंतालीश टाली करवी गोचरी, नमवू नमरा जेम चिंता माने लोचरी ॥ कनक कचोलां गेम लेणी वत्स काचली, जावजीव लगे वाट न जोवी पाउली ॥ १० ॥ जे श्ह लोके श्राशंस के परलोके परमुहा, कायर ने कुपुरुषने ए सवि उबदा॥धीर वीर गंजीरने शी पुक्कर कदा, मान करी ए वात बीहावो शुं मुदा ॥११॥ परिषद केरी फोजावी जब लागशे, संयम नगर सनाव कोट तव नांगशे ॥ तहारे वह तुज जोर कांश नहीं फावशे, पुत्र श्रमारं ताम वचन मन धावशे॥१५॥ कोटे शुन्न मनोरथ सुनट बेसामगुं,
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(३३) सत्य रूप पमकोट तेमांहे समार\॥समतानाले ज्ञान गोला जरी मारशु, परिषद केरी फोज आवंती वारशू ॥ १३ ॥ राग द्वेष दोय चोर जोरावर बूटशे, पुण्य खजानो माल अमूलक खूटशे ॥ कांत्युं पीज्युं वत्स कपास ते थायशे, मन केरी मन मांहे के होश समायशे ॥ १४ ॥ पहेरी उत्साह सन्नाह पराक्रम धनुष ग्रही, स्थिरता पण वैराग के बाण पुंखी करी ॥ साहमा पहेली मुठे हणशुं ते सही, वीरजननी तुज नाम कहावीश ते वही ॥१५॥ सर्व गाथा ॥२४॥
॥दोहा॥ ॥ वलती माता श्म कहे, जोगवो लोग संसार ॥ जुक्त नोगी हुया पली, लेजो संयमनार ॥१॥
॥ ढाल सत्तरमी॥ ॥ मांकण मूगलो ॥ ए देशी ॥ सांजल रे मोरी माता, ए तो विषयारस फुःखदाता हे॥निज मन समजाय लो॥ मन समजाय लो मोरी माता, ए तो जनम मरण पुःखदाता हे ॥ निज० ॥१॥जेणे न कीयो धर्म लगार, ते तो पहोता नरक मकार हे॥ निज ॥ जे जे कीधां एणे संसार, ते तेहनी आवे लार हे॥ ॥ निज०॥२॥ण नव पीमा पावे, ते तो मूल कोय न
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(३४) मिटावे हे॥ नि ॥कुटुंब मिली सहुआवे, पण दुःख कोय न वहेंचावे हे ॥ निज० ॥३॥तो परजव कुण श्रासी, जीव कीधां पाप पुण्य वासी हे ॥ निज० ॥ ते एकलडो फुःख पासी, बीजो श्रामो कोश्न थासी हे॥ निज॥४॥ण नवथी हुँ मरीयो, लख चोराशीमां फरीयो हे ॥ नि॥ बाल मरणे हुँ मरीयो, वार अनंती अवतरीयो हे॥ निज० ॥ ५॥रमणी रंग पतंग, नहीं पाले प्रीत अन्नंग हे ॥ नि॥रमणी करावे बहु जंग, तेहगुं कुण करे संग हे॥निज०॥ ॥ ६॥ एमां जे प्राणी माच्या, ते तो मूरख कहीये साचा हे॥ नि० ॥ण संसारडो जगमो कूमो, में तो जिनमारग पायो रुमो हे॥निज०॥७॥हुं राचुं नहीं एमां जंमो, जेम पांजरा मांहे सूमो हे॥ निज० ॥ ॥॥ माताजी अनुमति दीजे, घमी एकनी ढील न कीजे हे ॥ नि ॥ माताजी मया करीजे, जेम मुज कारज सीजे हे ॥ निजण ॥ ए॥ श्री नेमीसर पास, हुं तो पूरीशमननीआश दे॥नि॥माये जाएयो कुंथर उदास, करे वली उत्तर तास हे निः॥१०॥
॥दोहा॥ ॥धनादिक बहु मंत्रवी, उत्तर पमुत्तर बहु कीध
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(३५) ॥ ते विस्तार तो बे घणो, अंतगम मांहे प्रसि॥१॥ वलती कहे राणी देवकी, रे पुत्र तुंलघुवेश ॥संयम उक्कर सही, ते तुं केम पालेश ॥२॥
___॥ ढाल श्रढारमी ॥ ॥ लाउलदे मात मलार ॥ ए देशी ॥ वली एम कहे कुमार, आणी प्रेम अपार, श्राज हो श्रमीय रे समाणी वाणी सांजली जी॥१॥उपनो मन वैराग, संयम उपर राग, आज हो धन सजान सहु दीसे का रिमो जी॥२॥में जाएयो सर्व असार, एकज धर्म आधार, आज हो बेकर जोमी माताने एम विनवे जी ॥३॥ माता पिताना पाय, प्रणमे सुत सुखदाय, श्राज हो अनुमति दीजे माता मुज जणी जी॥४॥ सुण वत्स तुं लघुवेश, हुं केम दे उपदेश, आज हो सुत पाखे मावमी एकली किम रहे जी॥५॥वचन अपूरव एह, श्रवणे सुएयां गहगेद, आज हो जलजर नयणे बोले राणी देवकी जी ॥६॥ ते पुत्र न पाले दीरक, पालवी सुगुरु शिख, श्राज हो घर घरनी निदा नमंता दोहिली जी॥७॥ जावजीव निर्धार, चालवू खांमाधार, आज हो बावीश परिषद बलवंत जीतवा जी॥॥शाल दाल घृत गोल, कोण देशे
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(३६) तंबोल,आज हो केशरीये वाघेरे कस कोण बांधशे जी ॥ ए॥ नित्य नवां वस्त्र सिणगार, करवा मनोहर
आहार, आज हो अरस निरस थाहार ने मेला कापडां जी॥ १०॥ सहेज बिदाइ फूल सार, तोहे नावे निंद लगार, आज हो मानसंथारे सुवु दिन दिन दोहिढुंजी॥ ११॥पीयूँ उनुनीर, सहेवु पुःख शरीर, श्राज हो जाए करीने सागर तरवो दोहिलो जी ॥ १२ ॥ बावल देवी बाथ, लोह चणा देश हाथ, आज हो मीण तणे रे दांते चावण दोहिलो जी ॥ १३ ॥ वलतो कुमर अबीह, वचन कहे जेम सिंह, थाज हो कायरनुं हियडु रे कंपे अति घणुं जी ॥१४॥हुं तो सिंह जेम शूर, पालुं संयम पूर, श्राज हो चारित्र पाली शिवरमणी वरं जी॥१५॥इंद चंद नरिंद, दाणव देव मुणींद, श्राज हो अथिर संसारमें सबल के बाथडे जी॥१६॥ तीर्थंकर गणधार, वासुदेव चक्री सार, श्राज हो एहवा वीर पण थिर कोइ नवि रह्या जी ॥ १७ ॥ तो अवरां कुण वात, एम अवधारो मात, आज हो मोह निवारण था कामी मुज तणा जी ॥ १७ ॥ तो शुं अत्यंत स्नेह, एम जीव दोय देह, थाज हो तुज विहुणी माता केम
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( ३७ )
रहे जी ॥ १७ ॥ तुंमुज जीवन प्राण, की की काजल समान, आज हो जंबर फूल परे सुणतां दो हिलो जी ॥ २० ॥ इष्ट कंत पीयु मोय, तुं मुज विसामो होय, आज हो मुज मन वाल्हो यति घणो तुं सही जी ॥ २१ ॥ तुं पुत्र नाहनो बाल, केलि गरज सुकुमाल, आज हो जोग योग्य बे अवस्था ताहरी जी ॥ २२ ॥ रूप कला गुणपात्र, निरुपम निर्मल गात्र, आज हो सोमलरी बेटी परणो पदमणी जी ॥ २३ ॥ मीठी प्रभु अमृत वाण, में कीधी मात प्रमाण, वाज हो मायाशुं मन मोरो उतरी गयो जी ॥ २४ ॥ जाएयो में थिर संसार, बेशुं संयमजार, आज हो मात मया करी अनुमति मुजने थापजो जी ॥ २५ ॥ पबे लेजो संयमजार, यादरजो श्राचार, आज हो कन्या विचक्षण परणो लामकी जी ॥ २६ ॥ पुत्र मुज मनहुंती चाल, जाएं रमामीश बाल, आज हो तुज उपर मुज आशा बे घणी जी ॥ २७ ॥ मात पिता ने जाय, घणुंक मोह लपटाय, याज हो कह्युं रे न माने कुंवर सुलक्षणो जी ॥ २८ ॥ घणुं रे थइ दिलगीर, नयणे विबूटे नीर, आज हो विलाप करे बे वसुदेव देवकी जी ॥ २७ ॥ हलधर
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(३०) माधव नाय, ततण विगर बुलाय, आज हो मधुर वचनशुं माधव एम कहे जी ॥३०॥टाळु नाश्ताहरु पुःख, विलसो मनोहर सुख, आज हो वाय विना कुःख निवारं ताहरूं जी ॥३१॥ जनम मरण वारो मोय, सुख मानी रहुं तोय, आज हो उःखहरण सुखकरण तुमे बांधवा जी ॥ ३२ ॥ देव दाणव इंजराय, ए केणेही न मिटाय, आज हो कर्मदय थकी सहुए टले जी ॥ ३३ ॥ कय करवा निज कर्म, बेशुं संयमधर्म, श्राज हो अनुमति दीजे बंधव मुज जणी जी ॥ ३४ ॥ कृष्ण कहे एम वाय, सुण सुण मोरा नाय,आज हो राजे बेसाइंछारामतिर्नु ए सही जी ॥ ३५ ॥ वरतावं ताहरी आण, करुं हुं हुकम प्रमाण, आज हो आणा वरतावं सघले ताहरी जी ॥ ३६ ॥ मौन रह्या तेणी वार, कृष्ण हरख्या निर्धार, श्राज हो सऊन परिवार सहु राजी हुवा जी ॥३७॥ करवा ते कृष्ण काज, लेश बेसाड्या राज, आज हो हुकम चलावे गजसुकुमालनो जी॥३०॥ कृष्ण कहे एम वाण, रायहुकम प्रमाण, आज हो हाथ जोमीने केशव एम कहे जी ॥३ए ॥ वरतावो माहरी आण, करो हुकम परिमाण, आज हो दीदा
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(३ए) सवनी अब तयारी करो जी॥४०॥खनंमार खोलाय, तीन लाख नाणुं कढाय, आज हो वेगे रे मंगावो रजोदरण पातरां जी ॥४१॥ नारायणे तेमहीज कीध, श्राझा सेवकने दीध,आज हो सामग्री सरवे संयमनी सऊ करे जी ॥ ४२ ॥ कुंअरने निश्चल जाण, माता अमृत वाण, आज हो आशिष दीये राणी देवकी जी॥४३॥धन्य द श्राज, सफल फल्यां मुज काज, आज हो चरणना शिष्य थाशुश्रीनेमनाथना जी ॥४४॥ वाजां ने नीशाण, बेसारी शिबिका आण, आज हो आणीने सोप्या ने श्रीजगनाथने जी॥४५॥ रहेती एहने तंत, हुं तो इष्टने कंत, आज हो तुमने रे सोंपुं बुंप्रजुजी शिष्य नणी जी॥४६॥ प्रजुजीए दीक्षा दीध, कुंअरनुं कारज सीध, श्राज हो माता पिता रे कुंअर प्रत्ये कहे जी ॥ ४ ॥धरजो मन शुजध्यान, दिन दिन चमते वान, आज हो सिंह तणी परे संयम पालजो जी ॥४॥ तव ते देवकी नार, कहे प्रजुने वारंवार, बाज हो तप करतां एहने तमे वारजो जी॥ ४ ॥ एणे ए नवह मकार, फुःख नवि दीतुं लगार, श्राज हो देव तणी परे सुख एणे जोगव्यां जी ॥५०॥
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(४०) मुख्या तरस्यानी चाह, करजो एहनी संजाल, आज हो जालवजो एहने रुमी परे घणुं जी॥५१॥माहरी हती पोथीने बाथ, ते दीधी तुम हाथ, आज हो जेम जाणो तेम हवे तमे राखजो जी ॥५२॥स०॥श्ए॥
॥दोहा॥ ॥ एम कही पाग वट्या, देवकी ने परिवार ॥ पली कृष्ण पण वांदीने, पहोता नगर मजार ॥१॥ प्रजुजीए दीदा देश, शिखव्यो सर्व श्राचार ॥ प्रजु पासे विनये करी, नणे अंग ग्यार ॥२॥र्यासमिति शोजता, थया गज अणगार ॥ बकाय तणी रक्षा करे, पाले पंचाचार ॥३॥
॥ ढाल उंगणीशमी॥ ॥ सोरठ देश सोदामणो ॥ ए देशी ॥ - ॥ दीदा दिन प्रनु वांदीने, मशाणे संध्याकाल रे ॥ पमिमा गश्कानस्सग्ग रह्या, तिहां सोमल आव्यो चाल रे ॥ सोजागी शुक्लध्याने चढ्यो ॥ ए श्रांकणी ॥१॥मुनि देखी वैर उबस्यो, थयो कोपांतर काल रे॥ विण अवगुण मुज पुत्रीनो, जनम खोयो तें बाल रे ॥सो॥२॥एम बहुरीसे परजली, बांधी माटीनी पाल रे ॥ केसु वरणा माथे धस्या, धगधगता खेर अंगार
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(४१) रे ॥ सो० ॥३॥ तापे तुबमी खदखदे, फळफम फूटे हाम रे ॥ चाम चमचडे नसा तडतडे, लोही वहे निलाम रे ॥ सो॥४॥धीर वीर मुनि ध्याने चड्या, करे निज धर्म संजाल रे॥ जे दाजे ते माहरूं नहीं, पण नाण्यो मने करी काल रे ॥ सो० ॥५॥ अनादि कालनो जीवडे, कस्यो प्रवृतिनो संग रे ॥ पुजलरागे रीजीउँ, नव नवे ते रंग रे ॥ सो० ॥ ६॥ कुमति सेनाने वश पड्यो, जीव रट्यो तुं संसार रे॥ अनादि कालनो जूली गयो, हवे करो निज विचार रे ॥ सो॥७॥ सुमति निवृत्ति अंगीकरी, टाली अनादि उपाधि रे ॥ क्षमा नीरे बातम सिंचीयो, आणी परम समाधि रे ॥ सो ॥ ॥ अपूरवकरण शुक्लध्याननो, त्रीजो पायो कपकश्रेण रे ॥ परम शुक्ल लेश्या वरी, तो शुं बाले अग्नि तृण वीण रे ॥ सो० ॥ए॥घातिकमें खपावीया, टाल्यो कवि. कार रे ॥ करम टाली केवल लही, पहोता मुक्ति मकार रे॥ सो॥ १० ॥ केवलमहोत्सव सुरे कयो, पनी पूग्यो देवकी मोरार रे ॥ सुर वृत्तांत सवे कह्यो, ते सूत्रे में विस्तार रे ॥ सो० ॥ १९॥ सात सहोदर मुक्ति गया, वांदी नेम जिणंद रे ॥ नित्य एहवा
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(४२) मुनि संचारीये, लहीये परमानंद रे॥ सो० ॥१५॥ धरम दलाली कृष्णे करी, खरच्यु अव्य अपार रे॥ चार तीर्थने साह्य करी, वली वधामणी दीधी सार रे॥ सो० ॥ १३ ॥ तिणे तीर्थंकरगोत्र बांधीयु, सुणजो सहु नर नार रे ॥त्रीजीथी नीकली श्रमम नामे, जिन होशे जग आधार रे ॥ सो ॥ १४ ॥ करम खपावी केवल लही, पहोंचशे मुक्ति मकार रे॥ एडवू जाणी जे धर्म श्रादरे, ते लेशे नवजलपार रे ॥ सो ॥ १५ ॥ सर्व गाथा ॥ ३७॥ समाप्त ॥ ॥ इति श्रीदेवकीजीना षट् पुत्रनो रास समाप्त ॥
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॥ अथ मूर्खशतक प्रारंनः॥ मूर्ख जनमां श्रा नीचे लखेलां एकसो अपलक्षण मांहेलांघणांक अपलक्षण दीवामां आवे ने तेनां नाम१ उद्यम करवा समर्थ बतां उद्यम न करे.
विहानोनी सनामां पोतानी प्रशंसा करे. ३ वेश्यानां वचन उपर विश्वास राखे. ४ पाखंडी कृत थाडंबर देखी प्रतीति आणे. ५ जूगार रमी धन पेदा करवानी आशा राखे.
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( ४३ )
६ कर्षणथी धन पेदा करवानो संदेह थाणे. 9 निर्बुद्धि बतां मोटां कार्य करवानी वांडा करे. वणिक बतां एकांते कोइ बंदमां रसिक होय. ए माथे देवु कर णखपती वस्तु वेचाती लीए.
१० पोते वृद्ध बतां दश वर्षेनी कन्या परणे. सांजल्या ग्रंथोनुं व्याख्यान करे.
११
१२ जगतमां जे प्रत्यक्ष वस्तु होय तेने बानी ढांके. १३ पोतानी स्त्री चपल बतां ईर्ष्या राखे. १४ समर्थ वैरी बतां तेनाथी शंकाय नहीं. १५ धन पीने पी पश्चात्ताप करे. १६ मोटा कवीश्वरनी साथे विवाद करे. १७ प्रस्तावे परवडुं बोले.
१८ बोलवाने प्रस्तावे मौन धारण करे. १९ लाज थवाने अवसरे कलह करवा बेसे. २० जोजनवेलाए रोष करे.
२१ घणो लाज तो देखी धनने विखेरी मूके. १२ ज्यां सामान्य जाषा बोलवी जोइए, तिहां कठिन संस्कृत जेवी जाषा बोले. ने धने की दयामणो थाय.
२३ पुत्राधीनपणा २४ स्त्रीना पीयरपक्षवाला पासे प्रार्थना करे.
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(४४) २५ स्त्रीने हास्ये रीसाणो थको विवाह करे. २६ पुत्र उपर रीसाणो थको तेने बंधनमां घाले. २७ कामुकनी स्पर्खाए करी दातार थाय. २७ देणदारनी प्रशंसाथी अहंकार करे. शए बुधिना गर्वे करीने हितनां वचन न सांजले. ३० कुलने मदे करी कोश्नी चाकरी न करे. ३१ कामी थको घणुं पुर्खन एवं अन्य दीए. ३२ अव्य वगेरे उधारे देश्ने पाडं मागे नहीं. ३३ लोजी राजानी पासेथी लाननी वांडा करे. ३४ पुष्ट राजा उतां तेनी पासे न्यायनी श्छा करे. ३५ श्रापमतलबी साथे स्नेहनी आशा राखे. ३६ पुष्ट मित्र बते पोते निर्जयपणे रहे. ३७ कृतघ्ननो उपकार करवा माटे प्रयास करे. ३० निरस माणसने अर्थे पोताना गुण वेचे. ३ए पोताने समाधि उतां वैद्य औषध करे. ४० पोते रोगी थको कुपथ्य करवा जाय. ४१ लोने करी पोताना स्वजननो त्याग करे. ४२ वचने करी पोताना मित्रने उहवे. ४३ लाननी वेलाए आलस करे.. ४४ शकिवंत उतां प्रिय साथे कलह करे.
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( ४५ ) ४५ ज्योतिषी निमित्तियाना कहेवाथी राज्यने वांबे. ४६ मूर्ख साथे एकांत करवामां यादर करे. ४७ दुर्बल जनने पीमवा शूरवीर थाय. ४८ प्रत्यक्ष दोषवाली स्त्री साथे राचे, रतिसुख करे. ४७ गुणनो अन्यास करवामां क्षणेक रागी न होय. ५० द्रव्यादि संचय करीने पारके हाथे व्यय करावे. ५१ राजानी प्रशंसा करवा मौन धारण करे . ५२ लोकोनी अगल राजादिकनी निंदा करे. ५३ दुःख पडे थके दयामणो थाय. २४ सुखमां वर्त्ततो बतो दुःख दारिद्र्याने विसारी मूके. २५ अल्प वस्तुनुं रक्षण करवा माटे घणो व्यय करे. ५६ वस्तुनी परीक्षा करवाने अर्थे विष खाय.
धातुर्वादे करी कमाववा माटे धननो नाश करे. ५० दयरोगी थको रसायणनो रसीयो थाय. ५० पोताना मुखे पोतानी मोटाइ करतो फरे. ६० रीसे करी अपघात करवानी छा करे. ६९ निरर्थक फेरा खाय, व्यर्थ जमतो फरे. ६२ तीर वागे तोपण उजो उनो युद्ध जोया करे. ६३ शक्तिमान् साथै विरोध करी निश्चिंत सुवे. ६४ स्वल्प धन होय तोपण घणो आडंबर करे.
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(४६) ६५ हुं पंमित बुं एम चिंतवतो वाचाल थाय. ६६ हुं सुलट बुं एवा गर्वथा निर्नय थको रहे. ६७ अति स्तुतिए वखाएयो थको उचाट आणे. ६७ वढवामनां वचन बोलतो मर्म प्रकाशे. ६ए जे दरिखी निर्धन होय तेना हाथमां धन श्रापे. 30 जे कार्य सिह थवानो संदेह होय तेवा कार्यमां
धनव्यय करे. ७१ धननो व्यय करी नामुंकरती वेलाए लेखु जोतां
संदेह थाणे जे आटटुं भव्य केम खरचागयुं? ७२ जे दैव करशे ते थाशे एवी आशा करी बेसी .. रहे, परंतु पुरुषार्थ कांश पण करे नहीं. ७३ दरिखी तो जण जणनी पासे बेसे, वाचाल थाय. ७४ बीजाए वाख्यो थको जमवु विसारी मूके. ७५ गुणहीण बतो आपणा कुलने प्रशंसे. ७६ सनामां बेठगे थको अवचे उठी जाय. ७ त थ जाय अने संदेशो विसार। मूके. 3 उधरसनो व्याधि होय ने चोरी करवा चाले-प्रवर्ते. पए कीर्तिने अर्थे मोटो जोजननो वरो करे. ७० पोतानी प्रशंसा माटे थोडं जमे, भूख सहे. ७१ स्त्रीना जयथी याचकने श्रावतां वारे.
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(४७) २ कृपणताने लीधे अपयश उपार्जन करे. ३ प्रत्यद दोषवाला माणसनां वखाण करे. G४ साद घोघरो उतां गीत गावा बेसे. ७५ थोडं जमे अने जमवानुं श्रति रसयुक्त करे. ७६ चाटुक वचन बोलतो सामानुं निराकरण करे. ७ वेश्यानो जे यार तेनी साथे कलह करे. ज्बे जण मंत्र श्रालोच करता होय तिहां तेमनी ___पासे जर वचमा उन्नो रहे. ए राजानो प्रसाद पामे बते जाणे जे ए प्रसाद
मारे निरंतर निश्चे रहेशे. ए अन्याय करीने मोटाश्नी वांग करे. ए! धनहीण तो जे जे कार्य धनथी थतां होय
तेवां तेवा कार्यों करवानी वांग करे. ए२ लोकोनी श्रागल पोतार्नु तथा पारकुं गुह्य प्रकाश - करतो फरे. ए३ कीर्तिने अर्थे अजाण्या माणसनो हामी थाय. ए४ जे हितशिदा करे तेनी उपर मत्सर थाणे. एए सर्व कोश्नो विश्वास करे एटले जेटबुंधोबुं तेटवू
सर्वे फूधज जे एम जाणे. ए६ लोकव्यवहार लोकाचारनी वात न जाणे.
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(४७) ए पोते निखारी उतां उनुं जमवा वांजे. ए पोते गुरु होय, पूज्य होय, मोटो होय, तेम बतां ___क्रियामां शिथिल थाय, परंतु सक्रियपणे न चाले. एए कुकर्म करी निर्लङ थाय, लोकलाज न करे. १० पोतेज वात करे अने पोतेज हसे. ए उपर लखेलां लक्षणे करी जे युक्त होय ते मूर्ख
जाणवो. ए मूर्खनां सो लक्षण कह्यां.
॥ इति मूर्खशतकं समाप्तं ॥
घरमां लक्ष्मी,मुखमां सरस्वती, बे,बाहुमां शुरवीरपणुं, करतलमां दानपणुं, हृदयमा सारी बुझि, शरीरमा रुपालापणुं,दिशाउँमा कीर्ति,गुणी जनमां संगति ए संघर्चा प्राणीने धर्मथी थाय बे, माटे सर्व श्ला. उने परिपूर्ण करनार धर्मने सेवो.
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