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(३१) वाणी सुणी जिनराज तणी काने पमी रे मामी॥ अंतर हैयमानी शांख माहेरी उघमी ॥ वलती माता बोले हुँ वारी ताहेरी रे जाया ॥ सुणी ए प्रजुजीनी वाणी पुण्या पूरी ताहरी ॥१॥ कही श्री जिनराज ते साची में सर्दही रे माश, लागी मीठी जेम साकर फूध ने दही ॥ दीजे अनुमति मुज संयम बेशु सही, न करो श्राज्ञानी ढील पुत्रे ऐसी कही ॥२॥ श्राज सनामां जैनधर्म वखाएयो जिनवरे, मुजने रुच्यो तेह बेह उखनो करे ॥ ए संसार असार के बार समो लख्यो, जन्म मरण फुःखकरण जलण जाले धख्यो ॥३॥ श्री जिनमारग गरण कारण उलख्यो, ए विना अवर न कोश् सकल शास्त्रे लख्यो ॥ कारागार समान श्रागार विहार ,तजवो कोश्क वार श्राखर पहेलां पडे ॥४॥ एक श्हां अणगारपणुं सुखकार बे, माता द्यो अनुमति वात न को करवी अ॥ नंदनवचन सुणीएम जननी जलफली, हित वाणी फुःख श्राणी नाखे थर गलगली ॥ ॥५॥ वाणी अपूरव वात पुत्रनी सांजली, घणुं मूर्गगत थाय ध्रसकी धरणी ढली ॥ नांगी हाथांरी चूम माथे केश विखस्या, वली हुई उठणोपूर ध्रसकी
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