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(३५)
धरणी पड्या ॥ ६॥ मोह तणे वश श्राय सूरत जांखी थर, शीतल वाय सचेत थबेठी नशाकुंत्ररना मुख साहमुं रहीने जोवती, मोह तणे वश बोले माता रोवती ॥७॥तुज मुख मांदेथी वछ वाणी ए केम पमी, मादरे तुज उपर आशा अति वमी ॥ हुँ मुखथी तुज नाम न मे@ अध घमी, रे जाया तुं जीवन अंधा लाकमी ॥ ॥ चारित्र बे वत्स मुक्कर असिधारा सही,सुरगिरि तोलवो बांह के तरवो जलदहि ॥ उपामी लोहनार के गिरि चमवो वही, तुं सुंदर सुकुमाल पाले केम थिर रही ॥ ए॥ दोष बेंतालीश टाली करवी गोचरी, नमवू नमरा जेम चिंता माने लोचरी ॥ कनक कचोलां गेम लेणी वत्स काचली, जावजीव लगे वाट न जोवी पाउली ॥ १० ॥ जे श्ह लोके श्राशंस के परलोके परमुहा, कायर ने कुपुरुषने ए सवि उबदा॥धीर वीर गंजीरने शी पुक्कर कदा, मान करी ए वात बीहावो शुं मुदा ॥११॥ परिषद केरी फोजावी जब लागशे, संयम नगर सनाव कोट तव नांगशे ॥ तहारे वह तुज जोर कांश नहीं फावशे, पुत्र श्रमारं ताम वचन मन धावशे॥१५॥ कोटे शुन्न मनोरथ सुनट बेसामगुं,
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