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________________ (१७) ॥दोहा॥ ॥ तिण काले ने तिण समे, नदिलपुर के गाम ॥ नाग शेठ ते तिहां वसे, सुलसा घरणी नाम ॥१॥ धण कण कंचण घणो, कतिणो नहीं पार ॥ पण मृतवछा ते सही, शोचे हृदय मकार ॥२॥ तव ते बोरु कारणे, हरिणगमेषी देव ॥ आराधे ते एक मने, नित्य नित्य करती सेव॥३॥ ॥ ढाल दशमी॥ केटले काले सेवा करतां, तुगे देव तिहां श्राय रे मार ॥ किण कारण तुंमुजने सेवे, शानी जे तुज चाय रे मा॥१॥ पुण्य तणां फल मीगंरे जाणो ॥ ए आंकणी ॥ वलती सुलसा एणी परे बोले, जोमी दोनुं हाथ हो देवा ॥ जिण कारण में तुजने श्राराध्यो, ते सुणजो तुमे नाथ हो देवा ॥ पुण्य० ॥२॥ धन तो माहरे नरीया नंमारा, तेहनी गरज न काय हो देवा॥ मूवा बालक जीवता थाय, ते मुज आपो वाय हो देवा ॥ पुण्य० ॥३॥ वलतो देवता एणी परे बोले, तुं सांजल मोरी वाय रे मा॥ मूवा बालक जीवता होवे, ते मुज शक्ति न कांय रे मा ॥ पुण्य०॥४॥ वलती सुलसा एणी परे बोले, सांजल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005378
Book TitleDevki Shatputra Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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