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(२६) हो, उपन्यो मन श्राणंद ॥ वलती देवकी एम कहे हो, तुं तो मुज कुलचंद ॥तुं तोमुज कुलचंद रे नाश, माहरी चिंता पूर गमाश् ॥ कृष्णे संतोषी निज माश, पली सुख विलसे आवासे जा॥ जी कानाजी जी ॥ ए॥ एणे अवसर देवथी चवी हो, देवकी उदर उपन्न ॥ सिंह सुपन देखी करी हो, मनमां दुश् सुप्रसन्न ॥ मनमां हुए सुप्रसन्न सोनागी, जा पीयुने पूबवा लागी॥पीयु कहे सुण तुं वमनागी, पुत्र होशे तुम गुणनो रागी॥जी माताजी जी ॥१०॥ तेह वचन देवकी सुणी हो, सुखमां गमावे काल॥ सवा नव मासे जनमीयो हो, कुंअर अति सुकुमाल ॥ कुंअर अति सुकुमाल देखीने, नाम दीयो गजसुकुमाल हरषीने ॥ हरष पामे देवकी निरखीने, रीके सहु कोश् गुण परखीने ॥ जी कुंअरजी जी ॥११॥ हवे माता निज पुत्रशुं हो, रमे रमाडे बाल ॥ मनना मनोरथ पूरवे हो, हाथो हाथ विसाल ॥ हाथो हाथ विसाल रे बाइ, रमाडे माता हरख उमाश्॥ हालरीमां दूलरीमा गावे, दिन गमावे राजी थावे ॥ जी कुंअरजी जी ॥ १५ ॥ गजसुकुमाल महोटो थयो हो, बहु उबरंगे नणाय ॥ रूप विचदाण जाणं ने
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