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________________ (४२) मुनि संचारीये, लहीये परमानंद रे॥ सो० ॥१५॥ धरम दलाली कृष्णे करी, खरच्यु अव्य अपार रे॥ चार तीर्थने साह्य करी, वली वधामणी दीधी सार रे॥ सो० ॥ १३ ॥ तिणे तीर्थंकरगोत्र बांधीयु, सुणजो सहु नर नार रे ॥त्रीजीथी नीकली श्रमम नामे, जिन होशे जग आधार रे ॥ सो ॥ १४ ॥ करम खपावी केवल लही, पहोंचशे मुक्ति मकार रे॥ एडवू जाणी जे धर्म श्रादरे, ते लेशे नवजलपार रे ॥ सो ॥ १५ ॥ सर्व गाथा ॥ ३७॥ समाप्त ॥ ॥ इति श्रीदेवकीजीना षट् पुत्रनो रास समाप्त ॥ -00000 ॥ अथ मूर्खशतक प्रारंनः॥ मूर्ख जनमां श्रा नीचे लखेलां एकसो अपलक्षण मांहेलांघणांक अपलक्षण दीवामां आवे ने तेनां नाम१ उद्यम करवा समर्थ बतां उद्यम न करे. विहानोनी सनामां पोतानी प्रशंसा करे. ३ वेश्यानां वचन उपर विश्वास राखे. ४ पाखंडी कृत थाडंबर देखी प्रतीति आणे. ५ जूगार रमी धन पेदा करवानी आशा राखे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005378
Book TitleDevki Shatputra Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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