Book Title: Devki Shatputra Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 35
________________ (३४) मिटावे हे॥ नि ॥कुटुंब मिली सहुआवे, पण दुःख कोय न वहेंचावे हे ॥ निज० ॥३॥तो परजव कुण श्रासी, जीव कीधां पाप पुण्य वासी हे ॥ निज० ॥ ते एकलडो फुःख पासी, बीजो श्रामो कोश्न थासी हे॥ निज॥४॥ण नवथी हुँ मरीयो, लख चोराशीमां फरीयो हे ॥ नि॥ बाल मरणे हुँ मरीयो, वार अनंती अवतरीयो हे॥ निज० ॥ ५॥रमणी रंग पतंग, नहीं पाले प्रीत अन्नंग हे ॥ नि॥रमणी करावे बहु जंग, तेहगुं कुण करे संग हे॥निज०॥ ॥ ६॥ एमां जे प्राणी माच्या, ते तो मूरख कहीये साचा हे॥ नि० ॥ण संसारडो जगमो कूमो, में तो जिनमारग पायो रुमो हे॥निज०॥७॥हुं राचुं नहीं एमां जंमो, जेम पांजरा मांहे सूमो हे॥ निज० ॥ ॥॥ माताजी अनुमति दीजे, घमी एकनी ढील न कीजे हे ॥ नि ॥ माताजी मया करीजे, जेम मुज कारज सीजे हे ॥ निजण ॥ ए॥ श्री नेमीसर पास, हुं तो पूरीशमननीआश दे॥नि॥माये जाएयो कुंथर उदास, करे वली उत्तर तास हे निः॥१०॥ ॥दोहा॥ ॥धनादिक बहु मंत्रवी, उत्तर पमुत्तर बहु कीध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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