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(२३) हां कीधरे॥गि०॥जीवजयणा कीधी नहीं॥का॥ के कूमां थाल में दीध रे ॥ गि० ॥ ॥ १३ ॥ में जीवाणी ढोलीयां ॥ का० ॥ के में मारी जू लीख रे ॥ गि ॥ तमके जीव में शेकीया ॥ का ॥ बहु जीव कीधो संहार रे ॥ गि॥ हं०॥ १५॥ कग्नि कर्म ते में कीयां ॥ का॥ के तोमी सरोवरपाल रे ॥गि ॥बाणे विंबी चांपीया ॥ का॥ न करी में शीलसंजाल रे ॥ गि० ॥ हुं० ॥ १५ ॥ पांतिनेदज में कीया ॥ का०॥ ईर्ष्या निंदा शराप रे ॥गि॥ कामनी गर्नज गालीया॥का॥के में कीधांप्रौढां पाप रे ॥ गि०॥ ॥ १६ ॥ अणगल नीर में वावस्यां ॥ का॥ के में पाड्या अंतराय रे ॥ गि०॥ के साधुने संतापीया ॥ का० ॥ ते फल श्राव्यां धाय रे ॥ गि ॥ ढुंग ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ १६५ ॥
॥ दोहा ॥ ॥ मातावयण श्रवणे सुणी, तव ते यादव राय ॥ हाथ जोमी विनये करी, बोले मधुरी वाय॥१॥ पूर्व संबंधी देवता, तेमावु मोरीमाय॥ ताहरा मनोरथ पूरवा, करीश हुँ एह उपाय ॥२॥
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