Book Title: Devki Shatputra Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 22
________________ (२१) ॥२॥हाथ जोमी माधव कहे, सांजलो मोरी माय॥ तुजने वात कह्या विना, गरज न सरशे काय ॥३॥ ॥ ढाल बारमी ॥ ॥ रहो रहो राजेसरा केसरीया लाल ॥ ए देशी॥ हुं तुज आगल शी कहुँ कानैया लाल, वितक फुःखनी वात रे ॥ गिरधारी लाल ॥ फुःखणी नारी घणी ॥ कानैया लाल ॥ पण कुःखणी ताहरी मात रे ॥ ॥गिणाहुंगाए शांकणी॥१॥जनम्या में तुज सारिखा ॥का॥ एकण नाले सात रे ॥ गि०॥ एके दुलराव्यो नहीं ॥ का० ॥ गोद लेश क्षिण मात रे ॥ गि॥ हुं० ॥२॥ ए बए वाध्या सुलसा घरे॥ का० ॥ हुँ नजरे श्रावी देख रे॥ गि॥वात कही प्रजु नेमजी ॥ का० ॥ जिणमें मीन न मेष रे ॥ गि० ॥ हुं० ॥ ॥३॥बए तो नाग घरे उबस्या॥का॥सुखसानी पूरी श्राश रे॥गि०॥राजकि डोमी करी ॥का ॥ दीक्षा लीधी प्रजु पास रे ॥ गि०॥ हुँ ॥४॥ए तो हवे अलगा रह्या ॥ काम् ॥ एक श्राव्यो तुं महारे पास रे॥गि ॥तुजने में नवि साचव्यो॥का ॥ माहरे श्राव्यो तुं बहेमास रे ॥गि०॥हुं०॥५॥ सोल वरस अलगो रह्यो । का० ॥ तुं पण यमुनाने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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