Book Title: Devki Shatputra Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 31
________________ (३०) रसाल, नामे गजसुकुमाल, आज हो मात पिताने वालहो कुंवर प्राणथी जी॥३॥ सुणी थाव्या नेम जिणंद,साथेसुर नर वृंद,श्राज हो सेव्या रे सुखदायक खामी समोसस्या जी॥४॥जादव बहु परिवार, मन धरी हर्ष अपार, आज हो कृष्णादिक सहु उबरंगे जया जी ॥ ५॥ करी बहु अति माम, वंदन नेमि खाम, आज हो गजसुकुमाल ते साथे वेश्ने जी॥६॥ विधिशुं वांदी जिनपाय, तव ते दोनुं नाय, श्राज हो उचित थानक तिहां आवी बेग सही जी ॥७॥ तव ते जिन हित श्राण, जाषे मधुरी वाण, बाज हो धर्मकथा कही बहु विस्तारशुं जी॥॥देशना सुणी तेणी वार, बज्यां सहु नर नार, श्राज हो वांदी रे व्रत ग्रहीने निज निज घर गया जी ॥ ए॥ वाणी सुणी कृष्ण राय, वांदी जिनवर पाय, आज हो जेम आव्या तेम निज नगरे गया जी॥१०॥स॥२०॥ ॥दोहा॥ - ॥ जिनवाणी श्रवणे सुणी, बज्यो गजसुकुमाल ॥ घरे आवी माता जणी, बोले वचन रसाल ॥१॥ ॥ ढाल सोलमी॥ ॥नदी यमुनाके तीर उडे दोय पंखीयां ॥ए देशी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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