Book Title: Devki Shatputra Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 21
________________ (२०) स्तने विबूटी सुधां केरी धार रे ॥ देव ॥२॥बल हैया मांहे तो मावे नहीं रे, जोतां लोचन तृप्ति न थाय रे ॥ तन मन रोमांचित हैयहूं उबस्युं रे, नजर न पानी खेंची जाय रे ॥ देव ॥३॥ एह सहोदर दीठा सारिखा रे, देवकी तो रही सामी निहाल रे॥ नेत्र जरीयां बांसुमां थकी रे, जाणे त्रटी मोती केरी माल रे॥देव०॥४॥वली निज अंगजने निरखी करी जी, उबस्यो अति घणो घणो नेह रे॥घर जातां पग साहामा वहे नहीं जी, फरी फरीने वांदे तेह रे ॥ देव ॥५॥वांदी लगवंतने नले नावशुंजी, दीग बेग ने उन्नाय रे ॥ श्रधन्य अपुण्य अकृत चिंतवे रे, मोहवशेश्री पुःख थाय रे ॥ देव० ॥६॥ घरे श्रावीने राणी देवकी जी, आर्त रोऊ मन ध्याय रे॥ एहवे अवसरे कृष्णजी आवीया रे, माताना वांदवा पाय रे ॥ देव ॥ ७॥ सर्व गाथा ॥ १४५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ कृष्णे पूरथी देखीया, श्राज खरी दिलगीर॥ पगे लाग्यो जाएयो नहीं, नयणे करे तस नीर ॥१॥ कहो माता किणे उहव्या, केणे लोपी तुज कार ॥ क्ली वली कृष्णजी विनवे, पण उत्तर न दीये बगार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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