Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 5
________________ . दो शब्द - परम शासन प्रभावक व्याख्यान वाचस्पति सुविशाल गच्छाधिपति प.पू. आचार्य देव श्रीमद् विजय रामचन्द्र सुरीश्वरजी मा. सा. की. पुनित आज्ञा से रतलाम नगरमे हमारा चातुर्मास हुआ. चातुर्मास दरम्यान कई भावुक लोगोने कहा कि जैन शासन के सिद्धान्तोकी तथा विधि विधानी की जानकारी के लिए जैन शासन के साहित्यका सर्जन गुजराती वगेरे भाषामे जितना उपकारी महापुरुषोने किया है उतना हिन्दी भाषामे नही किया तथा गीतार्थ सद्गुरु भगवन्तो का हिन्दी भाषी मध्यप्रदेश आदि देशोमे आवागमन भी कम है. इस कारण इन देशोमे जैन प्रजा धर्माराधना के विधि विधानमे तथा वहीवटी कार्योमें अत्यन्त अनिभिज्ञ रही है जैसी भावुक लोगोकी प्रेरणा पाकर चातुर्मास के प्रारंभ मे “दर्शन पूजन विधी' नामके पुस्तक का पुनः प्रकाशन किया और अन्तमें “देवद्रव्यादि व्यवस्था विचार" नामकी दुसरी पुस्तकं का प्रकाशन कीया। ___शास्त्रादि की दृष्टिसे इस पुस्तकमे कोई क्षति न रहने पावे इहलीए गच्छाधिपति आचार्य, देव श्रीमद् विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी मा. सा. के पुनित निश्रावर्ती विद्वद्वर्य मुनिराज (पन्यास) श्री हेमभूषण विजयजी मा. सा. को. इस पुस्तक मे लिखे साहित्यका मेटर देखने के लिए भेजा गया. गच्छाधिपति अचार्य देवकी अनुज्ञासे उन्होने तथा विद्वद्वर्य मुनिराज श्री कीर्तीयश विजयजी मा. सा. इन दोनो महात्माओ ने सारे साहित्यको कालज़ी पूर्वक पढकर भाषादि की दृष्टिसे जो क्षतिया थी उसका सुधार करने का तथा जरुरी वस्तुकी पूर्ति करनेका सहयोग दिया वह कभी भी भूला नहि जा सकता!

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