________________ भूमिका : 15 प्रकीर्णकों के नाम और संख्या को लेकर जो भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण उपलब्ध हैं, उसी संदर्भ में दृष्टव्य है कि मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित और श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई द्वारा प्रकाशित पइण्णयसुत्ताई भाग 1की प्रस्तावना में यद्यपि मुनिजी ने यह लिखा है कि प्रकीर्णक नाम से अभिहित ग्रन्थों का संग्रह किया जाय तो बाईस नाम प्राप्त होते हैं। मुनिजी ने वहां उन बाईस प्रकीर्णकों का नामोल्लेख भी किया है, किन्तु पइण्णयसुत्ताई भाग 1 में बीस प्रकीर्णकों एवं भाग 2 में सात प्रकीर्णकों तथा पाँच कुलकों का प्रकाशन हुआ है और इनमें से कुछ प्रकीर्णक उन पूर्व उल्लेखित बाईस प्रकीर्णकों से भिन्न हैं। __ मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित पइण्णयसुत्ताइं भाग 1 एवं भाग 2 में संग्रहित प्रकीर्णक इस प्रकार हैंपइण्णयसुत्ताई भाग-1, इसमें निम्न 20 प्रकीर्णक हैं : 1. देवेन्द्रस्तव 2. तन्दुलवैचारिक 3. चन्द्रकवैद्यक 4. गणिविद्या 5. मरणसमाधि 6. आतुरप्रत्याख्यान 7. महाप्रत्याख्यान 8. ऋषिभाषित 9. कुशलानुबंधी चतुःशरण 10. संस्तारक 11. वीरस्तव 12. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति 13. आतुरप्रत्याख्यान 14. चतुःशरण 15: भक्तपरिज्ञा 16. आतुरप्रत्याख्यान 17. गच्छाचार 18. सारावली 19. ज्योतिषकरण्डक 20. तित्थोगाली। पइण्णयसुत्ताई भाग-2, इसमें निम्न सात प्रकीर्णक और पाँच कुलक ग्रन्थ हैं: 1.आराधनापताका (प्राचीनाचार्य विरचित) 2.आराधनापताका (श्री वीरभद्राचार्य विरचित) 3.आराधनासार (पर्यन्त आराधना) 4. आराधना पंचक (श्री उद्योतनसूरि विरचित) (कुवलयमालाकहा के .अन्तर्गत) 5. आराधना प्रकरण (श्री अभयदेवसूरि प्रणीत) 6. आराधना (श्री जिनेश्वर श्रावक एवं सुलसा श्राविका द्वारा निरूपित) 7.आराधना (नन्दनमुनि द्वारा आराधित) 8. आराधना कुलक 9-10. मिथ्या दुष्कृत कुलक भाग 1 एवं भाग 2, 11. आलोयणा कुलक 12.अल्पविशद्धि कलक।