________________ 41 : चतुःशरण प्रकीर्णक (17) सभी जीवों के प्रति करूणाशील, सत्यवादी तथा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले ऐसे अरहंत मेरे लिए शरणभूत हों। (18) चौंतीस अतिशयों को धारण करने वाले तथा समवशरण में बैठकर धर्मोपदेश देने वाले ऐसे अरहंत मेरे लिए शरणभूत हों। .. (19) अपनी वाणी मात्र से जीव के अनेक सन्देहों को सम्यक् प्रकार से दूर करने वाले तथा तीनों लोकों को अनुशासित करने वाले ऐसे अरहंत मेरे लिए शरणभूत हों। (20) अपने वचनामृत से संसार के प्राणियों को शान्ति प्रदान करने वाले तथा उन्हें आत्म-गुणों में स्थापित करने वाले और लोक में स्थित जीवों का उद्धार करने वाले ऐसे अरहंत मेरे लिए शरणभूत हों। (21) अत्यद्भूत गुणों (अतिशयों) से युक्त, यश रूपी चन्द्रमा से दिगन्त को प्रकाशित करने वाले तथा अपने अनादि-अनन्त स्व-स्वरूप में स्थित रहने वाले ऐसे अरहंत मेरे लिए शरणभूत हों। - (22) वृद्धावस्था तथा मृत्यु से विमुक्त, दुःखों से पीड़ित समस्त जीवों (सत्वों) के लिए शरणभूत और तीनों लोकों के समस्त प्राणियों के लिए मंगलकारी अरहंतों को मैं नमस्कार करता हूँ।