Book Title: Chausaran Painnayam
Author(s): Suresh Sisodiya, Manmal Kudal
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 52
________________ 51 : चतुःशरण प्रकीर्णक (44) पापकर्मो को निर्दलित करने वाला, शुभकर्मो को उत्पन्न करने वाला, व्यक्ति को कुधर्मो से दूर करने वाला तथा श्रेष्ठ परिणाम वाला रमणीय जिनधर्म मेरे लिए शरणभूत हो। (45) जो जन्म, जरा, मरण रूपी सैंकड़ों व्याधियों में भी त्रिकाल में मृत नहीं होता है, ऐसा अमृत और अनेकांतमय जिनधर्म मेरे लिए शरणभूत हो। (46) काम और प्रमोह को प्रशमित करने वाला, जाने-अनजाने में भी वैर-विरोध नहीं कराने वाला, शिवसुख अर्थात् मोक्ष सुख रूपी फल देने वाला अमोघ धर्म अर्थात् जिनधर्म मेरे लिए शरणभूत हो। (47) नरकगति में जाने से रोकने वाला, गुणों का समूह, प्रवादी को भी क्षोभ रहित करने वाला तथा काम रूपी योद्धाओं को मारने वाला जिनधर्म मेरे लिए शरणभूत हो। (48) देवताओं की तरह स्वर्णिम कान्तिवाला, सुन्दर रत्न-अलंकरों से झंकृत, खजाने की तरह महामूल्यवान, दुर्गति को हरने वाला जिनदेव प्ररूपित जिनधर्म मेरे लिए शरणभूत हो।

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