Book Title: Chausaran Painnayam
Author(s): Suresh Sisodiya, Manmal Kudal
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 62
________________ 61 : चतुःशरण प्रकीर्णक (6). इस चतुःशरण को ग्रहण करने वाला मैं इस समय दृष्कृत की सम्यक् प्रकार से निंदा तथा प्रत्याख्यान करता हूँ एवं सुकृत की अनुमोदना और उसकी शरण ग्रहण करता हूँ। दुष्कृत गा) अनन्त संसार में अनादि मिथ्यात्व, मोह और अज्ञान के द्वारा जो-जो कुतीर्थ मेरे द्वारा किये गये हैं, उनको मैं त्रिविध रूप से त्यागता हूँ / (7) (8) मार्ग का अपलाप करके लोक में कुमार्ग का जो उपदेश मैंने दिया है तथा उससे जो कर्म बंध के हेतु बने हैं, उनकी मैं निन्दा करता हूँ। रति पूर्वक मेरे द्वारा जीवोत्पत्ति, जीवाघात अथवा कलह आदि जो कुछ भी किया गया है, उन सबको मैं आज त्रिविध रूप से त्यागता हूँ। (10) वैर-भाव, कषाय - कलुषता और अशुभ लेश्या के द्वारा जीवों के प्रति मेरे द्वारा जो कुछ भी पाप किया . गया है, उन सबको मैं त्यागता हूँ। . वा (11) इष्ट शरीर, कुटुम्ब, उपकरण तथा जीवों के उपघात की जनक जो भी मनोवृत्तियाँ मुझमें उत्पन्न हुई हैं, उन सबकी मैं निन्दा करता हूँ।

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