________________ র:হাহ0 gীচ্ছে (1) (अर्थाधिकार) (1) चतुःशरण गमन, (2) दुष्कृत गर्दा एवं (3) सुकृत अनुमोदन, यह समूह अनवरत कुशल कार्य करने के लिए है। (2) (चतुःशरणगमन) राग - द्वेष से रहित, त्रिदशेन्द्र द्वारा पूजित, सर्वज्ञ तथा तीनों लोकों के शुभ आश्रय रूप वे अरहंत मेरे लिए शरणभूत हों। (3) अष्टकर्मों को नष्ट करने वाले, कृत्य करके शाश्वत सुख प्राप्त करने वाले तथा तीनों लोकों के शीर्ष भाग पर स्थित रहने वाले सिद्ध इस समय मेरे लिए शरणभूत हों। (4) पंच महाव्रतों से युक्त, तृण, मणि, पत्थर और सोने आदि से तटस्थ भाव से विरत तथा सुगृहित (विख्यात) नाम वाले साधु मेरे लिए नित्य शरणभूत हों। कर्मरूपी विष का भली प्रकार नाश करने वाला, अतिशयाईयों का कल्याणगृह तथा संसाररूपी समुद्र में नौका की तरह यह जिणधर्म मेरे लिए शरणभूत हो।