Book Title: Chausaran Painnayam
Author(s): Suresh Sisodiya, Manmal Kudal
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 58
________________ 57 : चतुःशरण प्रकीर्णक (60) पुनः वह शुभ परिणाम वाला जीव पूर्व में बद्ध मंद रस वाली शुभ प्रकृतियों को तीव्र रस वाली शुभ प्रकृतियों में संक्रमित करता है तथा मंद रस वाली अशुभ प्रकृतियों का क्षय करता है और तीव्र रस वाली अशुभ प्रकृतियों को मंद रस वाली प्रकृतियों में संक्रमित करता है। (61) नित्य संक्लेश में बंधने से त्रिकाल में भी सुकृत फल की प्राप्ति नहीं हो सकती, किन्तु असंक्लेश में बंधने से सुकृत फल की प्राप्ति हो सकती है, ऐसा विज्ञजनों के द्वारा कहा गया है। (62) अहो ! चतुर्विध जिनधर्म की अनुपालना नहीं करने वाला, चतुःशरण ग्रहण नहीं करने वाला तथा चतुर्गति रूप संसार का जिसने छेदन नहीं किया है, ऐसा जीव मनुष्य जन्म को हारा हुआ है। (63) हे जीव ! वीरभद्र रचित इस अध्ययन का प्रमाद रहित होकर जो तीनों समय में ध्यान करता है, वह निर्वाण सुख .. प्राप्त करता है। ( कुशलानुबंधी अध्ययन समाप्त )

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