Book Title: Chausaran Painnayam
Author(s): Suresh Sisodiya, Manmal Kudal
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 44
________________ 43 : चतुःशरण प्रकीर्णक (सिद्ध शरण) (23) मैं मस्तक झुकाकर और उस पर अपने कर-कमलों का शेखर (सेहरा) लगाकर अर्थात् दोनों हाथों को जोड़कर उन्हें सिर पर लगाकर कर्म - मल की शुद्धि कर विशुद्ध आत्म-दशा को प्राप्त लोकपूज्य अरहंतों की शरण को सहर्ष ग्रहण करता हूँ। (24) अष्ट कर्मो का क्षय करने वाले, केवलज्ञान तथा केवल दर्शन से समृद्ध, सर्व अर्थो और लब्धियों को प्राप्त सिद्ध मेरे लिए शरणभूत हों। (25) तीनों लोकों के शीर्ष भाग पर स्थित, परमपद को प्राप्त अचिन्त्य सामर्थ्य (अनन्त शक्ति) से युक्त, मंगलकारी तथा निर्वाण एवं प्रशस्त सुख (अनन्त सुख) को प्राप्त सिद्धों की शरण ग्रहण करता हूँ। (26) प्रतिपक्ष अर्थात् विभाव-दशा को समूल नष्ट कर देने वाले, वस्तु-स्वरूप को यथार्थ रूप से जानने वाले, मन, वचन और काया के व्यापार (योगों) का त्याग करने वाले तथा स्वाभाविक सुख अर्थात् अनन्त सुख वाले सिद्ध मेरे लिए शरणभूत हों। -- (27) जिन्होंने चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण कराने वाले और पीड़ा देने वाले राग-द्वेष रूपी भव-बीजों को अपनी ध्यानाग्नि से पूर्णतः दग्ध कर दिया है तथा योगीश्वर भी जिनके शरणागत हैं, उन सिद्धों की शरण स्मरणीय है।

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