Book Title: Chausaran Painnayam
Author(s): Suresh Sisodiya, Manmal Kudal
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 22
________________ भूमिका : 21 विषय वस्तु : चतुःशरण” नामक प्रस्तुत कृति में कुशलानुबंधी चतुःशरण एवं चतुःशरण प्रकीर्णक की क्रमशः 63 एवं 27 कुल 90 गाथाओं का अनुवाद किया गया है। ये सभी गाथाएँ सामायिक से चारित्र की शुद्धि, चतुर्विशति, जिनस्तवन से दर्शन विशुद्धि, वन्दन से ज्ञान की निर्मलता, प्रतिक्रमण से ज्ञान-दर्शन और चारित्र की विशुद्धि, कायोत्सर्ग से तप की विशुद्धि तथा प्रत्याख्यान से वीर्य की विशुद्धि का विवेचन प्रस्तुत करती हैं। कुशलानुबंधी चतुःशरण नामक ग्रन्थ में निम्नलिखित विवरण उपलब्ध होता है : सर्वप्रथम लेखक अर्थाधिकार में सावद्ययोगविरति, उत्कीर्तन, गुणव्रत अंगीकार, स्खलित की निंदा, व्रण चिकित्सा तथा गुणधारण इन छ: आवश्यकों का नामोल्लेख करता है (1) / तत्पश्चात् इन छ: आवश्यकों का विस्तार निरूपण करते हुए ग्रन्थकार कहता है कि सामायिक के द्वारा सावद्ययोग आदि पापकर्मों का परित्याग कर एवं उनके असेवन से व्यक्ति सम्यक् चारित्र की विशुद्धि प्राप्त करता है (2) / .. ग्रन्थानुसार जिनेन्द्र देवों के अतिशय युक्त गुणों के संकीर्तन के द्वारा व्यक्ति सम्यक् दर्शन की विशुद्धि प्राप्त करता है (3) / तथा आचार्य, उपाध्याय आदि के प्रति समर्पण एवं उन्हें विधिपूर्वक वन्दन करने से व्यक्ति सम्यक् ज्ञान की विशुद्धि प्राप्त करता है (4) / ... प्रतिक्रमण का महत्व एवं लाभ निरूपित करते हुए कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने दोषों की विधि पूर्वक आलोचना और प्रतिक्रमण करता है, वह व्यक्ति प्रतिक्रमण द्वारा अपनी आत्म विशुद्धि करता है (5) / / तत्पश्चात ग्रन्थकार कहता है कि जिस प्रकार चिकित्सा के द्वारा व्रण अर्थात् घाव का उपचार होता है, उसी प्रकार यथाक्रम से

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