Book Title: Chausaran Painnayam
Author(s): Suresh Sisodiya, Manmal Kudal
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 36
________________ श्री वीरभद्राचार्य विरचित चतु:शरण प्रकीर्णक अपरनाम कुशलानुबंधी अध्ययन (छः आवश्यक का संक्षिप्त अर्थाधिकार) (1) संक्षेप में छः आवश्यक इस प्रकार हैं :-(1)सावद्ययोग विरति (पाप व्यापार से निवृत्ति = सामायिक), (2) उत्कीर्ण (तीर्थंकरों का गुण-कीर्तन = चतुर्विंशति स्तवन), (3) गुरूभक्ति (व्रती और गुणी जनों के प्रति समर्पण = वन्दना), (4) स्खलनों की निन्दा (व्रतच्युति की आलोचना = प्रतिक्रमण), (5) व्रण चिकित्सा (अपनी कमियों को दूर करना = कायोत्सर्ग) और (6) गुणधारण (सद्गुणों को धारण करना .. = प्रत्याख्यान)। :: (छः आवश्यक का विस्तृत अर्थाधिकार) (2) सामायिक के द्वारा सावधयोग आदि पाप कर्मो के परित्याग * एवं उनके असेवन से व्यक्ति चारित्राचार (सम्यक् चारित्र) की विशुद्धि को प्राप्त करता है। (5) चौबीस जिनेन्द्रों के अतिशय युक्त गुणों के संकीर्तन के द्वारा व्यक्ति दर्शनाचार (सम्यक् दर्शन) की विशुद्धि को प्राप्त करता है। (4) ज्ञानादि गुणों से युक्त आचार्य, उपाध्याय आदि के प्रति समर्पण एवं उन्हें विधि पूर्वक वन्दन करने से व्यक्ति ज्ञानाचार (सम्यक् ज्ञान) की विशुद्धि को प्राप्त करता है।

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