Book Title: Chausaran Painnayam
Author(s): Suresh Sisodiya, Manmal Kudal
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 38
________________ 37 : चतुःशरण प्रकीर्णक (5) जो व्यक्ति स्खलनों अर्थात् अपने दोषों की विधि पूर्वक आलोचना और प्रतिक्रमण करता है वह व्यक्ति उस प्रतिक्रमण के द्वारा अपनी आत्मविशुद्धि करता है। (6) जिस प्रकार चिकित्सा के द्वारा व्रण (घाव) का उपचार होता है उसी प्रकार कायोत्सर्ग के द्वारा चारित्र (चारित्राचार) की यथाक्रम से शुद्धि होती है। (7) व्यक्ति गुणधारण रूप प्रत्याख्यान के द्वारा तपाचार तथा वीर्याचार की विशुद्धि करता है। . (चौदह स्वप्न) (8) तीर्थंकरों की माताएँ निम्न चौदह स्वप्न देखती हैं : (1) हाथी, (2) वृषभ, (3) सिंह, (4) अभिषेक युक्त लक्ष्मी, (5) फूलों की माला, (6) चन्द्रमा, (7) सूर्य, (8) ध्वजा, (9) कुंभ, (10) पद्म सरोवर, (11) सागर (क्षीर समद्र), (12) देवविमान या भवन, (13) रत्नराशि और (14) निर्धूम अग्नि। _ (मंगल) ___ अमरेन्द्र (दवेन्द्र), नरेन्द्र, मुनिन्द्र के द्वारा वंदित महावीर को वन्दन करके मैं कुशलानुबंधी नामक सुन्दर अध्ययन को कहता हूँ। (अर्थाधिकार) ... (10) साधु जनों को कुशलता के लिए अनवरत, चतुःशरण-गमण, दुष्कृतों की निंदा तथा सुकृतों की अनुमोदना करनी चाहिए।

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