________________ भूमिका : 23 से पीड़ित जीव के लिए शरणभूत तथा समस्त प्राणियों के लिए त्रिभुवन के समान मंगलकारी हैं (12-22) / सिद्धों की शरण अंगीकार करने हेतु सिद्धों की विशेषता बतलाते हुए कहा गया है कि वे अष्ट कर्मो का क्षय करने वाले, ज्ञान से युक्त, दर्शन से समृद्ध तथा सर्वार्थलब्धि से सिद्ध, परमतत्व के जानकार, चिंता रहित, सामर्थ्यवान, मंगलकारी, निर्वाण प्राप्त, वस्तु स्वरूप को यथार्थ रूप से जानने वाले, मनः व्यापार का त्याग करने वाले, प्रतिकूलता में प्रेरणा देने वाले, बीज रूप संसार को ध्यानरूपी अग्नि से समग्रतया दग्ध करने वाले, परमानन्द को प्राप्त, गुण सम्पन्न, भव सागर से पार कराने वाले, समस्त द्वन्द्वों का क्षय करने वाले, हिंसा आदि से विमुक्त तथा सम्पूर्ण जगत को स्तंभ की तरह धारण करने वाले हैं (23-28) / . ग्रन्थकार साधु शरण ग्रहण करने हेतु साधु शरण की विशेषता बतलाते हुए कहते हैं कि साधुजन नवब्रह्मचर्य का पालन करने वाले, पृथ्वी की तरह शांत, समस्त जीवलोक के बांधव, दुर्गति रूप समुद्र से पार उतारने वाले, मोक्षसुख प्राप्त कराने वाले, केवली के समान उत्कृष्ट ज्ञान वाले, श्रुतधर के समान विपुल बुद्धि वाले, पूर्व अंग एवं . उपांग ग्रन्थों के ज्ञाता, क्षीराश्रव, मध्वाश्रव, संभिन्नस्रोत लब्धिवाले, कोष्ठ . बुद्धि वाले, चारण शक्ति वाले, वैक्रिय शरीर वाले, पादगमन करने वाले, वैर-विरोध से मुक्त, कभी द्वेष नहीं करने वाले, प्रशान्त मुख -मुद्रा वाले, इष्ट गुणों से युक्त, मोह का नाश करने वाले, स्नेहरूपी बंधन को नष्ट करने वाले, अहंकार से रहित, परमसुख की कामना करने वाले, मनोरम आचरण करने वाले, विषय-कषाय से मुक्त, घर-परिवार से रहित, विषय-भोगों से रहित, हर्ष, विषाद, कलह एवं शोक से रहित, हिंसादि दोष से रहित, करुणा करने वाले, स्वयंभू के समान सुन्दर, अजर-अमर पद से परिवेष्टित, सुकृत पुण्य करने वाले, काम-विकार से घृणा, चोर वृत्ति एवं संभोग से रहित तथा गुण रूपी रत्नों से विभूषित हैं