Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 18
________________ ur ur ६८६ ४४७ ६६१ Wory xurr Mm ६६२ ४३७ ४५२ विषय सूत्रांक पृष्ठांक विषय पत्रांक पृष्ठांक अपरिग्रही श्रमण को पदम की उपमा ६.५१ ४३४ आम्यन्तर परिग्रह से विरत पण्डित ६८४ ४४५ सभी एकान्त पण्डित सर्वत्र समभाव के माधक परिग्रह विरत पापकर्म बिरत होता है होते हैं ६५२ गोलों का रूपक सभी बाल जीव आसक्त हैं, सभी पण्डित भोगों से निवृत्त हो अनासक्त हैं ४३४ मनोज और अमनोज्ञ काम भोगों में राग-द्वेष अनासक्त हो मरण से मुक्त होता है। ४३५ का निग्रह करना चाहिए ६८८ अनासक्त ही हमेशा अहिंसक होता है सभी कामभोग दुःखदायी हैं ४४७ कामभोगों में अनासक्त निग्रन्थ ४३५ काम भोगाभिलाषी दुःखी होता है ६६० त्यागी थमणों के लिए प्रमाद का निषेध __काम-भोगों में आसक्ति का निषेध शल्य को समाप्त करने वाला ही श्रमण होता है ६५८ ४३६ काम गुणों में मूळ का निषेध ६६२ त्यागियों को देव गति ४३६ शब्द थयण की आसक्ति का निषेध ६६३ धीर पुरुष धर्म को जानते हैं रूप दर्शन आसक्ति-निषेध ६६४ ४५१ ध्रुवचारी कर्मरज को धुनते हैं बाल जीवों के दुःखानुभब के हेतु ४५१ श्रामण्य रहित धमण सभी एकान्त बाल जीव ममत्व युक्त होते है ६६६ ४५१ पाँच आम्नव द्वार ६६३ ४३७ आतुर व्यक्तियों को परीषह असह्य होते है ६६७ कषाय कलुषित भाव को बढ़ाते हैं परिग्रह का स्वरूप-३ ४५२ स्वजन शरणदाता नहीं होते ४५३ परिग्रह का स्वरूप ६६४ ४३८ कर्मवेदन-काल में कोई शरण नहीं होता ४५५ परिग्रह पाप का फल दुःख ६६५ ४३८ अपरियड महावन आरधना का फल-५ परिग्रह महाभय परिग्रह-मुक्ति ही मुक्ति है ६६७ ४३६ अपरिग्रह आराधन का फल ४५५ परिग्रह से दुःख - अपरिग्रह से सुख ४३६ मुख-स्पृहा-निबारण का फल सुखी होने के उपाय का प्ररूपण जिनिवर्तना का फल तृष्णा को लता की उपमा ४४० आसक्ति करने का प्रायश्चित्त-६ अर्थलोलुप हिंसा करते हैं भब्द श्रवण शक्ति के प्रायश्चित्त सूत्र लोभ-निषेध ____४४१ वप्रादि (प्राकारादि) शब्द श्रवण के प्रायश्चित्त जीवन विनाशी रोग होने पर भी औषधादि के ४५७ __संग्रह का निषेध ६७३ ४४१ इहलौकिकादि शब्दों में आसक्ति का प्रायश्चित्त अक्षनादि के संग्रह का निषेध ४४१ सूत्र ४५८ बालजीव र कर्म करते हैं ६७५ ४४२ गायन आदि करने का प्रायश्चित्त सूत्र ७०७ ४५६ मूर्ख धर्म को नहीं जानते हैं मुख आदि से वीणा जैसी आकृति करने के आसक्ति-मिषेध-४ प्रायश्चित्त सूत्र ७० ४५ सर्वज्ञ ही सर्व बास्रवों को जानते हैं ६७७ ४४३ मुख आदि से वीणा जैसी ध्वनि निकालने के रति-निषेध ६७८ ४४३ प्रायश्चित्त सूत्र গরি-নি ១ ឱ ४४३ विमादि अवलोकन के प्रायश्चित्त सूत्र ४६० रति-अरति-निषेध ६८० ४४ इहलौकिक आदि रूपों में आसक्ति रखने का भिक्षु को न रति करनी चाहिए और न अरति प्रायश्चित्त सूत्र करनी चाहिए ६८१ ४४४ पात्र आदि में अपना प्रतिबिम्ब देखने के राग यमन के उपाय ६.२ ४४५ प्रायश्चित्त सूत्र ७१२ भाम्पत्तर परिग्रह के पाश से बद्ध प्राणी ६८३४४५, गन्ध संघने का प्रायश्चित्त सूत्र . . : ६७० ४४० ४६०

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