Book Title: Char Tirthankar Author(s): Sukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय ( द्वितीय संस्करण ) प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी संघवी के चार तीर्थङ्करों - भगवान् ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर पर आधारित गुजराती-हिन्दी लेखों एवं व्याख्यानों के हिन्दी अनुवाद के संग्रह का प्रकाशन आज से लगभग छब्बीस वर्ष पूर्व जैन संस्कृति संशोधन मंडल वाराणसी द्वारा किया गया था । यद्यपि यह ग्रन्थ लघुकाय ही है किन्तु इसमें पं० सुखलालजी की जिस गवेषणात्मक और स्वतंत्र विचार दृष्टि का जो परिचय मिलता है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इन लेखों में तुलनात्मक दृष्टि से भी उन्होंने काफी कुछ प्रकाश डाला है । वर्षों से यह ग्रन्थ पाठकों के लिये अनुपलब्ध था। चूंकि जैन संस्कृति संशोधन मंडल अब पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान में समाहित हो चुका है इसलिये विद्याश्रम का यह बनता है कि वह इस अनुपलब्ध किन्तु महत्त्वपूर्ण कृति को पुनः प्रकाशित करे । दो वर्ष पूर्व विद्याश्रम ने अपने पूर्व व्यवस्थापक तथा पं० सुखलाल जी संघवी के अनन्य भक्त श्री शांतिभाई वनमाली सेठ का अभिनन्दन किया और उस अवसर पर जो धन संग्रह हुआ था, उससे लोकोपयोगी सन्मति साहित्य ग्रन्थमाला चलाने का निश्चय किया गया था, उसी के प्रथम पुष्प के रूप में हम इस कृति का पुनः प्रकाशन कर रहे हैं। पं० सुखलालजी की बहुश्रुतप्रज्ञा से निःसृत इस ग्रन्थ की मूल्यवत्ता के सम्बन्ध में लिखना अनावश्यक ही होगा, पाठकगण इसका पारायण कर स्वयं ही इसके महत्त्व एवं मूल्य को जान लेंगे । आज इसे पुनः पाठकों को उपलब्ध कराते हुए हम अत्यन्त संतोष का अनुभव कर रहे हैं। यदि इस प्रकार के ग्रन्थों में पाठकों ने रुचि प्रदर्शित की तो हम ऐसे अन्य भी लोकोपयोगी ग्रन्थों को प्रकाशित करते रहेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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