Book Title: Chaiyavandana Mahabhasam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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तिपक्षः
सिरिततिपरिचित प्रमाला पावनीमकड़ी, बाई नेमिचिजी वासी।
पिज्जा-सिदोरी बडेव पमावगा मषिमा १२८ प्रापपनिको धर्मकची वादी नैमित्तिकसपती। विवा-
सिम विरप्रमावका मणिवा ॥ १९८॥ युधिषारित- पक्वपमावणकर, सजुधिर पि सोहन ने। साऽपि यो.
रोसो तो रयणं, खारो पिपसंसियो लोए॥१२९॥ प्रवचनप्रभाषनाकर ख(सयुरिचिवमपि शोभनं यम् ।
रोपाद नयन र भारोऽपि शशंसितो लोके ।। १२९ ।। भुतमाहप्र.
जोजो असुअम्माहो, पडिवक्सो तस्स तस्स मनियो। जलवायद पवनों, परिपत्थी) दिजए वचो॥१३० यो या श्रुतमाहः प्रतिपक्षः तल बस भणितव्यः । यतो वाति पवनः द्वारं दीयते वकः ॥ १३०॥
संघ अवमनंतो, जाणगमाषी जणो असम्गाही। जमालिः कहमवि मिमं ममइ, जालिपमहाणमप्पा १३१
संघमवमन्यमानो शायकमानी जनोऽसहाही।
कयमपि मिनं मन्यते जमालिप्रमुखभ्य आत्मानम्१३१ संघापमान- संसिज्जइ नियकिरिया, सिज्जद सपलसंपवबहारो। षणम् कचोएचोविपरा, विमाणणा हंदिसंघस्सा ॥१३२॥
शसते निजक्रिया दूज्यते सकलसंघव्यवहारः।
कुत इतोऽपि परा विमानना हन्त ! सपस ॥ १३२ ॥ १. इयं गाया अप्रेऽपि ९०८ तमी। २. क्षारोऽपि समुद्रो रोषाद रखें नयन के प्रशसते, इति तत्त्वमनुमीयते। ३. अयं शब्दो देश्यप्राकृतगतो द्वारवाची, गवाक्षपाची या अवगम्यते। ४. जमालिः किल श्रीवीरजिनजामाता वीरवाक्यप्र. विपन्नीर, तपतंग भीमावश्यकसूत्रे निन्हकप्रकरणे (पृ. ३११-३१३)ता विशेषावश्यकमन्ये गावा २१.६-२३३२ तमा पबमा भीममवतीसू व नरमे शतके त्रयचिोदेश।
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