Book Title: Chaiyavandana Mahabhasam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 148
________________ . हवंदचमहाम्बई। एतद् द्विषाऽपि एवं चिन्त्यमानं न संगतं मावि । नावासूत्रं भगवन् ! क्तः शिष्यतामत्र परमार्थः ॥७४९॥ मज गुरू मो! तुमए, विवप्पकल्लोललोलहियएप । प्रतिवरः मोहं कओ पयासो, मावत्यमबुज्झमायण ॥७५०॥ भणति गुरुर्भोः ! त्वया विकल्सकलोललोलादपेन । मोपं कृतः प्रयासो भावार्यमबुध्यमानेन ॥ ७५० ॥ नणु सिद्धमेव ममवत्रओं, एसो सबोचमो नमोकारो। आणाणुपालणत्यं, मावनमोकाररूव चि ॥ ७५१ ।। ननु सिद्धमेव भगवत एष सर्वोत्तमो नमस्कारः । आज्ञानुपाम्नार्थ मावनमस्काररूप इति ॥ ७५१ ॥ आवाजुपालबाजो, ततो साचमा मवतरण (1)। होइ धुवं मविया, माहासुतं कहमजुवं? ॥७५२।। आशानुपालनात् ततः सर्वोत्तमाद् भवतरणम् । भवति ध्रुवं मत्र्यानां गाथासूत्र कवमयुक्तम् ? ॥७५२।। ता विहिवायो एसो, धुइवानो वा न दोसमावहइ । सम्भूयमासणाओ, संतगुणुक्किचणा चेव ।। ७५३ ।। बतो विधिवाद एषः स्तुतिवादो वा न दोषमावहति । सतभाषणात् सगुणोत्कीर्वना एव ।। ७५३ ॥ नपुतणुसत्ता नारी, तीसे कह घडइ एरिसं विरियं श्रीनिर्वाणउत्तमवीरियसझा, होइ जो मुचिसंपची ॥७५४॥ मीमांसा नन नुसत्त्वा नारी तस्मां कवं घटते एतादृशं वीर्यम् ? । उत्तमवीर्यसान्या भवति यतो मुक्तिसंपतिः ॥ ७५४ ॥ वीरिपविरहाजो चिय, सचमपुढवीगई वि नो तीसे । वा कह नेवाणगमो, मणिवर! पद चि गुरुराह ॥ वीर्यविरहादेव सप्तमपृथिवीगतिरपि नो तस्याः । पापं निर्वाकानो मुनिवर! घटते ? इति गुग्राह ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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