Book Title: Chaiyavandana Mahabhasam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 143
________________ १३० सिरिसंतिसूरिविरह किंच विनवासानं , सानात्तु दर्शनं दर्शनावरणं तु । परणेभ्यो मोक्षः परंपरा इयमेवम् ॥ ७२० ॥ नियवीरिएन अहवा, कालसहावाइको वसे काउं। मवियचयनामाए, विसालसोवाणमालाए ॥ ७२१ ॥ निजवीर्येण अथवा काल-स्वभावादीन वझे कृत्वा । भवितन्यतानाच्या विशालसोपानमालया ॥ २१ ॥ मिच्छत्तमहाकूवा, निम्गंतूण जिऊग य कमेष । संमत्तदेसविरई-चरमाइपरंपरं परमं ॥ ७२२ ॥ मिथ्यात्वमहाकूपाद् निर्गत्य अर्जित्वा च क्रमेण । सम्यक्त्व-देशविरति-चरणादिपरंपरां परमाम् ॥ ७२२ ॥ एवं परंपराए, गयाण मोक्खं सया नमो होउ । जस्स जहिं मलविगमो, तस्स तहिं चेव मुनिपर्य ७२३ एवं परंपरया गतेभ्यो मोक्षं सदा नमो भवतु । यस्य यत्र मलविगमः तस्य तत्रैव मुक्तिपदम् ॥ ७२३ ।। एवंविहदुनयनिर-सणत्थमवंतसुद्धबुद्धीहि । लोयग्गमुवगयाणं, पयमेवं पयडमुवइह ॥ ७२४ ॥ एवंविधदुर्नयनिरसनार्थमत्यन्तशुद्धबुद्धिमिः । लोकाप्रमुपगतेभ्यः पदमेवं प्रकटमुपदिष्टम् ॥ ७२४ ॥ ईषत्प्रारभारा लोगो चउदसरजू, इसिपमारामिहाणवरपुढवी । लोयग्गथमिया सा, सीया य जिलागमपसिद्धा ७२५ लोकश्चतुर्दशरजुरीपत्याग्मारामिधानवरपृथिवी। लोकाप्रस्तूभिता सा सिता व जिनागमप्रसिद्धा ।।७२५॥ तेसिं उवार गंतू-ज जोयणं तस्स उवरिमे कोसे। उवरिमछब्भायम्मी, लोयम्मं सिवपर्व पची ॥७२६॥ वेषामुपरि गत्वा योजनं वसोपरिमे कोशे। उपरिमप्रभागे लोकानं शिवपदं मुक्तिः ॥ २६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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