Book Title: Chaiyavandana Mahabhasam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 52
________________ चेहगवणमहामासं। हावियोवसामिगेगा, अम्मुदयपसाहनी मवे पीया। पूजाफलम् नेवाणसाहणी तह, फलया उ जहत्वनामेहि।।२१३॥ विघ्नोपशामिकैकाऽभ्युदयप्रसाधनी भवेहितीया। . निर्वाणसाधनी तथा फलदा तु यथार्थनाममिः ॥२१३ ॥ पवरं पुफाईवं, पढमाए ढोयए उ वकारी। माद्यपूजादयोआह अमओ विहु, निजोगजो बीयपूजाए।॥२१४, ० स्तूनि. प्रवरं पुष्पादिकं प्रथमायां दौकते तु तत्कारी । आनयत्यन्यतोऽपि खलु नियोगतो द्वितीयपूजायाम्।।२१४ भवणे वि सुंदरं जं, वत्या-ऽऽहरणाइवत्यु संभवह । तं मणसा संपाडइ, जिणम्मि एगग्गथिरचित्तो।।२१५॥ मुबनेऽपि सुन्दरं यवना-ऽभरणादिवस्तु संभवति । तन्मनसा संपादयति जिने एकापस्थिरचित्तः ।। २१५ ।। निश्चं चिय संपुन्ना, जइ विहु एसा न तीरए काउं । तह वि अणुचिट्टिअबा, अक्खइ-दीवाइदाणेण ॥२१६ नित्यमेव संपूर्णा यद्यपि खल्वेषा न तीर्यते (शक्यते) कर्तुम् । तयाऽप्यनुष्ठातव्याअत-दीपादिदानेन । २१६ ।। मावेज अवत्थतियं, पिंडत्य-पयथस्वरहियत्तं । जिनम्य अब छउमत्य-केवलिचं, मुत्तत्तं चेव तस्सत्थो ॥ २१७ ॥ स्थात्रयम् १. एतद् मायात्रयं ( २१३-२१४-२१५ गाथा) नवमे षोडशके एवम्-"विनोपशमन्यावा गीताऽभ्युदयप्रसाधनी चान्या । निर्वाणसापनीति च फलदा तु यथार्थसंज्ञामिः ॥१०॥ प्रवरं पुष्पादि सदा चाचा सेवते तु तदाता । आनयति चान्य. तोऽपि हि नियमादेव द्वितीयायाम् ॥ ११ ॥ त्रैलोक्यसुन्दरे यद् मनसाऽऽपादयति तत् तु परमावाम् । अखिलगुणाधिकसयोगसारसद्ब्रह्मयागपरः ॥ १२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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