Book Title: Chaiyavandana Mahabhasam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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चेहयवंदनमहामास।
१०२. जानाति त्रिकालाबखां अगतो यत् स भवेद् मुनितेन । शोमनव्रतैर्युक्त इति सुव्रतः पदद्विकं नाम ।। ६०३ ॥
जह विहुसवे एवं विह ति तह विहुइमम्मि गन्मगए । मुनिमवनविजाया जणणीजं सुबय चि मुनिसुबओ तम्हा ॥६०४॥ राषा यद्यपि खलु सर्वे एवंविधा इति तथाऽपि खल्वस्मिन् गर्भगते ।
जाता जननी यत् सुव्रता इति मुनिसुव्रतस्तस्मात् ॥६०४॥ उत्तमगुणगणगरुयत्तणेण नमिया सुरासुरा जम्हा । नमिमामा चलणेसु भुवणगुरुणो, तेण नमी भन्मए मयवं ॥६०५ उत्तमगुणगणगुरुकत्वेन नताः सुराऽसुरा यस्मात् । चरणयोर्भुवनगुरोस्तेन ननिर्भण्यते भगवान् ।।६०५॥ तह वि विसेसनिमित्तं, विजयनरेंदस्म मंदिरे सोउं । समिविशार विबुहनिवहेहि विहियं, सुयजम्ममहामहं रम्मं ॥६०६ तथाऽपि विशेषनिमित्तं विजयनरेन्द्रस्य मन्दिरे श्रुत्वा । विबुधनिवहैर्विहितं सुतजन्ममहामहं रम्यम् ।। ६०६ ।। ईसा-मच्छरगरुयत्तणेण आगामिपरिभवभयाओ। रुद्धा पञ्चंतियपत्थवेहि तुरियं पुरीमहिला ॥६०७॥ ईर्ष्या-मत्सरगुरुकत्वेन आगामिपरिभवभयात् । रुद्धा प्रत्यन्तिकपार्थिवैस्त्वरितं पुरीमिथिला ॥ ६०७ ॥ वडियचिंते लोए, विजयनरिंदम्मि वाउलीभूए । मूढम्मि मंतिवग्गे, अइयोरे कोट्टरोहम्मि ॥ ६०८ ॥ वृद्धचिन्ते लोके विजयनरेन्द्र व्याकुलीभूते।।
मूढे मन्त्रिवर्ग अतिघोरे कोट्टरोहे (धे) ॥ ६०८ ॥ चिंतइ वप्पाएवी, सुरवइमहियस्स मज्झ तणयस्स । मज्झण्हदिणयरस्स व, तेयं विसहंति कह रिउणो॥६०९
चिन्तयति वप्रादेवी सुरपतिमहितस्य मम तनयस्य । मध्याहदिनकरस्पेव तेजो विषहन्ते कथं रिपवः ॥६०९॥
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