Book Title: Chaiyavandana Mahabhasam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 120
________________ न्यार्थः बेइववंदमहामार्स। घम्मफलस्वरूवाइगुनगणो धम्मदेसबोसो सो। धर्ममामापथक्खो धम्मो इव, ममइ धम्मो जिपो तेण ॥५९२॥ धर्मफलमूतरूपादिगुणगणो धर्मदेशकः स सः । प्रत्यक्षो धर्म इव मण्यते धर्मो जिनतेन ।। ५९२ ।। अहवा अहियो घम्मुच्छाहो, जाओ जनपीए तम्मि उअरन्थे। धर्मविशेषार्थः तुटेन तेन पिउणा, जिणस्स धम्मो कर नाम ।।५९३॥ अथवा अघिको धर्मोत्साहो जातो जनन्याः तस्मिनुदरस्थे । तुष्टेन तेन पित्रा जिनस्य धर्मः कृतं नाम ।। ५९३ ।। संती पसमो ममइ, अबइरितो य तीए तो सन्ती। तमामा. रागद्दोसविउत्तो, मावत्थो होइ एयस्म ।। ५९४ ।। शान्तिः प्रशमो मण्यतेऽव्यतिरिक्तश्च तया ततः शान्तिः। रागद्वेषवियुक्तो भावार्थो भवत्येतस्य ।। ५९४ ॥ अचं पि एत्य कारणमिमस्स नामस्स गयउरे नयरे । जायं महंतमसिवं, खुद्दसुरकोवदोसेण ।। ५९५ ॥ अन्यदप्यत्र कारणमस्य नाम्नो गजपुरे नगरे । जातं महदशिवं क्षुद्रसुरकोपदोषेण ॥ ५९५ ॥ अइरादेवीउयरे, अवयरिए सोलसम्मि तित्थयरे । असिवं ज्झति पणहं, तिमिरं व समुग्गए मूरे ॥५९६।। अचिरादेव्युदरेऽवतीर्णे षोडशे तीर्थकरे । अशिवं झटिति प्रणष्टं तिमिरमिव समुद्गते सूर्ये ॥५९६॥ जाया पुरम्मि संती, तत्तो तुडेण वीससेणेणं । संति ति कयं नाम, विलोपचूडामणिजिणस्स ॥५९७॥ जावा पुरे शान्तिः ततस्तुष्टेन विश्वसेनेन । शान्तिरिति कृतं नाम त्रिलोकचूडामणिजिनस ॥५९७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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