Book Title: Chaiyavandana Mahabhasam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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२
सिरिसंतिसूरिविरइअं ऊससियं नीससियं, दो सहजा तह निजओगजा तिथि। खेलं-ग-दिहि-संचालनामया सेसया बज्झा ॥४५२॥ उच्छसितं निःश्वसितं द्वौ सहजौ तथा नियोगजालयः ।
श्लेष्मा-न-दृष्टि-संचालनामयाः (काः) शेषका बाह्याः ४५२ आकाराणां किं आह भुयणेकपहुणो, वंदणकजे पयट्टमाणस्स । प्रयोजनम् ?
सत्तवओ न हु जुत्तं, आयारपगप्पणं एयं ॥ ४५३ ॥ आह भुवनैकप्रभोर्वन्दनकार्ये प्रवर्तमानस्य । सत्त्ववतो न खलु युक्तमाकारप्रकल्पनमेतत् ।। ४५३ ॥ जिणवंदणापयट्टो, पाणच्चायं करेज जइ जीवो । मोक्खो वा सग्गो वा, नियमेण करडिओ तस्स४५४॥ जिनवन्दनाप्रवृत्तः प्राणत्यागं कुर्याद् यदि जीवः । मोनो वा स्वर्गो वा नियमेन करस्थितस्तस्य ॥ ४५४ ॥ का भत्ती तित्थयरे?, का वा एगग्गया मणे तस्स। जो वंदणापवत्तो, संभावइ देहसुह-दुक्खे ॥ ४५५ ।। का भक्तिस्तीर्थकरे ? का वा एकाग्रता मनसि तस्य ? ।
यो वन्दनाप्रवृत्तः संभावयति देहसुख-दुःखानि ॥४५५।। आचार्यः
नो देहरक्खणट्टा, आगारपसवणा इमा किं तु । सुविसुद्धपालणट्ठा, भंगभया चेव भणियं च ॥४५६।। आचार्य:
नो देहरक्षणार्थमाकारप्ररूपणा इयं किन्तु । मुविशुद्धपालनार्थ भङ्गभयाश्चैव भणितं वा ॥ ४५६ ॥ वयभंगो गुरुदोसो, थेवस्स य पालणा गुणकरी उ । गुरुलाघवं च नेयं, धम्मम्मि अओ य आगारा ४५७॥
उत्तरम्
पश्चाशकसा
क्ष्यम्
१. एषा माथा पञ्चमे पञ्चाशके द्वादशी-(पृ. ९५)।
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