Book Title: Buddhiprabha 1965 07 SrNo 68 Author(s): Gunvant Shah Publisher: Gunvant Shah View full book textPage 7
________________ તા. ૧૦-૭-૧૯૬૫] જૈન ડાયજેસ્ટ ૫ । (३) पिता और पुत्र बाहर के कमरे में बैठे हुए थे। भीतर से एक काँच के बर्तन के फूटने की आवाज आयी। पिता ने कहा---पुत्र ! जरा निगाह करो. बर्तन किसने फोड़ा है ? पुत्र ने कहा-पिताजी ! यहाँ बैठे-बैठे ही जान लिया है, भीतर जाने की जरूरत ही नहीं है। पुत्र के उत्तर से पिता को विस्मय हुआ। जब घर में दस-बारह मनुष्य हैं तब यह तुमने कैसे जान लिया ? पुत्र ने कहा- यह वर्तन मेरी माँ के हाथ से फटा है। यदि और किसी से फूटता मो सदा के नियम के अनुसार बर्तन की आवाज के साथसाथ एक आवाज और होती। दूसरी आवाज नहीं होने के कारण मैंने जो अनुमान किया है, वह बिल्कुल सही होना चाहिये। बाद में जाँच की गयी तो पुत्र का कहना सही रहा । उस लड़के की माता दूसरों की छोटी सी गलती पर आग बबूला होकर बरस पड़ती थी और अपनी बड़ी से बड़ी भूल पर भी उसका ध्यान नहीं जाता था। ___समन्वय के लिये यह आवश्यक है. कि हम गुण ग्राहक बने दोपदी नहीं।Page Navigation
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