Book Title: Bruhad Vedoktarampaddhati
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Page 54
________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsurf andir खचक्रादिभिश्चिन्हैविप्रःप्रियतमैहरेः // रहितःसर्वधर्मेभ्योमृतोपिनरकंबजेत रा.प. ॥२॥चक्रचिन्हविहीनस्तुयःपूजयतिकेशवं // तत्सर्वनिष्फलंयातिपूजामंत्रजपा दिकं ॥३॥सुदर्शनेनयस्यांगंलांछितंवैभवेत्सदा // तस्यदेहेवसेन्नित्यंश्रि यायुक्तःस्वयंहरिः॥४॥ यत्फलंपृथिवीदानेकुरुक्षेत्रेरविग्रहे // विष्णुचक्रांकि तेदैहेदर्शनात्फलमाप्नुयात्॥५॥ चक्रांकितशरीरस्यगृहेमुक्तिःकरेस्थिता // आरण्यगमनंशुद्धंकिंपुनःपुण्यभूमिका // 6 // ततःप्रकृतिदेवाद्याःसनकादिम नीश्वराः॥देहंकुर्वतिसततंशंखचक्रादिलांछितं // 7 // तथाचमहारामायणे // सर्वैर्गुणैरपिचसंयमनेमयुक्तानिष्कल्मषास्सकलसिद्धिकराश्चनित्यं ॥येनांकिता धनुःशरैर्नचमंत्रराजस्योपासकानस्वजनारघुनंदनस्य // ८॥नित्यंप्रियेप्रियत। रोरघुनंदनस्यबाणोधनुर्विमलमंत्रषडक्षरश्च // बालेतदैवसकलेषुचचिन्हमध्ये / For Private And Personal

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