Book Title: Bolte Chitra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 12
________________ में जीवन एक गुलाब का फूल है, जिसमें तीक्ष्ण काँटा भी रहा हुआ है। योगी की परिभाषा में जीवन एक सागर है जिसमें बहुमूल्य रत्न भी हैं और कंकड़-पत्थर भी। अनुभवी की परिभाषा में जीवन अमृत भी है और विष भी। ____एक साधक ने जिज्ञासा प्रस्तुत की-कि जीवनम् ? जीवन क्या है ? ___ समाधान दिया गया—दोषविवर्जितं यत् ? दूषणों से शून्य होकर और गुण सम्पन्न बनकर जीवित रहना ही वस्तुतः जीवन है। सन्त तुकराम ने कहा-मानव शरीर सुवर्ण कलश के समान है उसमें विलास की सुरा न भरकर सेवा की सुधा भरो। ___जीवन का अर्थ स्वयं जीवित रहना, इतना ही नहीं है किन्तु दूसरों को भी जीवित रहने में सहयोग देना, स्वयं भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देना है। स्वेड मार्डेन ने लिखा-आनन्द और उल्लास ही जीवन है। यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात ने कहा है-अच्छे जीवन में ज्ञान और भावना का, तथा बुद्धि और सुख दोनों का संमिश्रण होता है। महादेवी वर्मा ने लिखा है-जीवन जागरण है, सुषुप्ति नहीं। उत्थान है, पतन नहीं। धरती के तमसाच्छन्न अंधकारमय पथ से गुजरकर दिव्य ज्योति से साक्षात्कार करना है, जहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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