Book Title: Bhav Tribhangi Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust RaipurPage 35
________________ संदृष्टि नं.1 गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव मिथ्यात्व 2 (मिथ्यात्व | 34 [चक्षु दर्शन, | 19 [औपशमिक, अभव्यत्व) अचक्षुदर्शन, कुमति, सम्यक्त्व, औपशमिक, कुश्रुत,कुअवधि ज्ञान चारित्र, क्षायिक पांच क्षायोपशमिक पांच लब्धि- दान, लाभ, लब्धि, (दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, भोग, उपभोग, वीर्य) केवलज्ञान, चार गति ,मनुष्यगति, केवलदर्शन,क्षायिक तिथंच गति, देव गति, सम्यक्त्व, क्षायिक नरक गति) (कृष्ण, चारित्र, मतिज्ञान, श्रुत नील, कापोत, पीत, ज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पद्म, शुक्ल लेश्या, पर्यय ज्ञान,अवधिदर्शन, स्त्री लिंग, पुल्लिंग, 'क्षायोपशमिक नपुंसक लिंग) चार सम्यक्त्व, सराग कषाय (क्रोध, मान, चारित्र, संयमासंयम] माया, लोभ) अज्ञान असिद्धत्व,असंयम, मिथ्यात्व, पारिणामिक भाव 3 (जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व)] सासादन 3 (कुमति, | 32 ( चक्षुदर्शन, औपशमिक, कुश्रुत, | अचक्षुदर्शन, कुमति, | सम्यकत्व, औपशमिक कुअवधि, कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान चारित्र, क्षायिक पांच ज्ञान) क्षायोपशमिक पाँच लब्धि, केवलज्ञान, केवल लब्धि, चार गति, दर्शन, क्षायिक सम्यक्त्व, लेश्या 6, तीन लिंग, क्षायिक चारित्र, मति, चार कषाय, अज्ञान श्रुत, अवधि, मनः पर्यय असिद्धत्व, असंयम, ज्ञान, अवधि-दर्शन, जीवत्व, भव्यत्व] क्षायोपशमिक सम्यक्त्व,सराग चारित्र, संयमासंयम,मिथ्यात्व, अभव्यत्व (22) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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