Book Title: Bhav Tribhangi Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust RaipurPage 75
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति अपूर्व- 0 करण अनिवृत्ति 3 ( 3 लिंग) करण सवेद भाग अनिवृत्ति 3 (क्रोध, मान माया तीन, करण अवेद कषाय) भाग सूक्ष्म 2 (लोभ, सांपराय सराग चारित्र) उपशांत मोह सम्यक्त्व, औपशमिक चारित्र) भाव Jain Education International 28 (उपर्युक्त 31क्षायो. सम्यकत्व पीत पद्म, लेश्या), 28 ( उपर्युक्त) 25 ( उपर्युक्त 28- तीन लिंग) 22 (उपर्युक्त 25 क्रोध, मान, माया) 2. ( औपशमिक 21 ( उपर्युक्त 22- सराग | चारित्र, लोभ कषाय + औपशमिक चारित्र) · (62) अभाव 22 (पूर्वोक्त 19+ पीत, पद्म लेश्या, क्षायोपशमिक, सम्यक्त्व) 22 ( उपर्युक्त ) For Private & Personal Use Only 25 (उपर्युक्त 25 - 3 वेद) 28 (25 पूर्वोक्त + क्रोध, मान माया) 29 ( क्षायिक भाव 8, कुज्ञान3, क्षायोपशिमक सम्यक्त्व, सरागसंयम, संयमासंयम, कषाय चार, लिंग 3, मिथ्यात्व, असंयम, लेश्या 5, अभव्यत्व) www.jainelibrary.orgPage Navigation
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