Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 150
________________ - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति| भाव अभाव प्रमत्त 29 (ज्ञान, दर्शन 3, |8 (अशुभ लेश्या 3, संयत वेदक सम्यक्त्व, संयमासंयम, नरकादि 3 सराग संयम, क्षायो. | गति, असंयम) लब्धि 5, मनुष्यगति, कषाय 4, लिंग 3, शुभ लेश्या 3, अज्ञान, असिद्धत्वजीवत्व, भव्यत्व)) - संदृष्टि नं. 84 क्षायिक सम्यक्त्व भाव (46) क्षायिक सम्यक्त्व में 46 भाव होते है । जो इस प्रकार से है - उपशम चारित्र, क्षायिक भाव १, ज्ञान, दर्शन 3, क्षायो. लब्धि 5, संयमासयम, सराग संयम, गति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, भव्यत्व, जीवत्व । गुणस्थान चौथे को आदि लेकर 11 होते हैं। संदृष्टि इस प्रकार है गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव अविरत 16 (नरक गति |34 (क्षायिक सम्यक्त्व, 12 (औपशमिक चारित्र, |देव गति, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षायो.| क्षायिक भाव 8, अशुभ लेश्या लिब्धि 5, गति 4, कषाय मनःपर्यय ज्ञान, 3, असंयम) 14, लिंग 3, लेश्या 6, संयमासंयम, सराग असंयम, अज्ञान, चारित्र) | असिद्धत्व, भव्यत्व, जीवत्व) देशसंयत 2 29 (उपर्युक्त 17 (उपर्युक्त 12(संयमासंयम, 34+संयमासंयम-6 संयमासयम + 6 अविरत अविरत की भाव |तिर्यचगति) की भाव व्युच्छिति) व्युच्छिति) प्रमत्त 29 (क्षायिक सम्यक्त्व, | 17 (नरकादि 3 गति, संयत ज्ञान, दर्शन 3, क्षायो.| अशुभ लेश्या 3, लब्धि 5, मनुष्यगति, कषाय 4, लिंग 3, शुभ असंयम, संयमासंयम, लेश्या 3, अज्ञान, औपशमिक चारित्र, असिद्धत्व,भव्यत्व, क्षायिक भाव) जीवत्व) (137) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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