Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 151
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव अप्रमत्त | 2 (पीत, पद्म 29 (प्रमत्त संयतोक्त)/ 17 (प्रमत्त संयतोक्त) संयत लेश्या ) अपूर्व 27 (उपर्युक्त 29-पीत, | 19 (उपर्युक्त 17 +पीत, करण पद्म लेश्या) पद्म लेश्या) अनिवृत्ति 3 (लिंग 3,) |27 (अपूर्व करणोक्त) | 19 (अपूर्वकरणोक्त) क.सवेद भाग अनि.क. | 3 (क्रोध, 24 (पूर्वोक्त 27-3 | 22 (पूर्वोक्त 19 +3 अवेद भाग मान, माया) |लिंग) लिंग) 25 (22 पूर्वोक्त + कषाय सूक्ष्मसा |2 (लोभ, 21 (24 पूर्वोक्त सराग चारित्र) | कषाय 3) उपशांत |1 (औप. चा.) | 120 (21पूर्वोक्त मोह +औपशमिक चा.. लोभ, सराग चारित्र) 26 (25 पूर्वोक्त -औप. चा.+लोभ, सराग चा.) | क्षीण मोह 13 (ज्ञान 4, 20 (गुणस्थानोक्त दे. | 26 (26 पूर्वोक्त-क्षायिक दर्शन 3, क्षयो. संदृष्टि 1) चारित्र+औप. चा.) लब्धि 5, अज्ञान) सयोग 1(शुक्ल 14 (गुणस्थानोक्त दे. | 32 (औप. चारित्र, ज्ञान के वली | लेश्या) संदृष्टि 1) 4, दर्शन. 3, क्षायो. लब्धि 5, संयमासंयम, सराग संयम, तीन गति, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 5, अज्ञान असंयम) अयोग | |13 (गुणस्थानोक्त दे. | 33 (32 पूर्वोक्त +शुक्ल के वली (गुणस्थानोक्त संदृष्टि 1) लेश्या) दे. संदृष्टि 1) (138) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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