Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 132
________________ संदृष्टि नं. 67 सामायिक + छे दोस्थापना संयम भाव (31) सामायिक छे दोपस्थापना संयम में 31 भाव होते हैं । जो इस प्रकार हैं - उपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यकत्व, ज्ञान 4, दर्शन 3, क्षयो. लब्धि 5, वेदक स., सरागसंयम, मनुष्यगति, कषाय 4, लिंग 3, शुभ लेश्या 3, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व । गुणस्थान प्रमत्तादिक चार होते हैं संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति . अभाव भाव 31 (उपर्युक्त कथित) | 31 ( " ) अप्र. 3(पीत, पद्म लेश्या, वेदक सम्यक्त्व) अपू. 28 (31- पीत, पद्म | 3 (पीत, पद्म लेश्या, |लेश्या, वेदक सम्य.) | वेदक सम्यक्त्व) 28 (उपर्युक्त ) | 3(उपर्युक्त ) अनि. स. 3(3 वेद) अनि. अवे. 3 (क्रोध, 25 (उपर्युक्त ) 28 - 1 6 (पीत, पद्म लेश्या, मान, माया) । | 3 वेद) वेदक सम्यक्त्व, लिंग 3) एवं परिहारे मण-पज्जवथीसंढहीणया एवं । सुहमे मणजुद हीणा वेदतिकोहतिदयतेयदुगा ॥101|| एवं परिहारे मनःपर्ययस्त्रीषंढ हीनका एवं । सूक्ष्मे मनोयुक्ता हीना वेदत्रिकक्रोधत्रितयतेजोद्विकाः ।। अन्वयार्थ - (एवं) इसी प्रकार (परिहारे) परिहारविशुद्धि चारित्र में उपर्युक्त सभी भाव (मण-पज्जवथीसंढहीणया)मनः पर्ययज्ञान, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद को छोड़कर जानना चाहिए । (एवं) इसी प्रकार (सुहमे) सूक्ष्मसाम्पराय चारित्र में (मणजुद) मनः पर्यय ज्ञान को जोड़ना चाहिए और (वेदति कोहतिदयतेयदुगा) वेदत्रिक, क्रोधादि तीन कषायें, पीत और पद्म लेश्यायें (हीणा) कम कर देना चाहिए। (119) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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