Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 140
________________ - भाव मिश्र गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति | अभाव सासादन | 4 (कुज्ञान 3, 129 (31- मिथ्यात्व, 9 (उपरोक्त 7+मिथ्यात्व, देवगति) अभव्यत्व) अभव्यत्व) 29 (29 पूर्वोक्त-3 9(9 पूर्वोक्त + 3 कु कुज्ञान देवगति +3 ज्ञान देवगति - 3 मिश्रज्ञान अवधि मिश्र ज्ञान, अवधि दर्शन) दर्शन) असंयत | 5 (लेश्या 3, | 32 (सम्यक्त्व 3, ज्ञान 6 (कुज्ञान 3, मिथ्यात्व, असंयम, 3,दर्शन 3, क्षयो. अभव्यत्व, देवगति) नरक गति) | लब्धि 5, नरकादि 3 गति, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 3, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व) ण हि णिरयगदी किण्हति सुक्कं उवसमचरित्त तेउदुगे। खाइयदसणणाणं चरित्ताणि हु खइयदाणादी 1106। न हि नरकगतिः कृष्णत्रिकं शुक्लं उपशमचारित्रं तेजोद्विके । क्षायिकदर्शनशानं चारित्रं हि क्षायिकदानादयः ॥ अन्वयार्थ - (तेजदुगे) पीत और पद्म लेश्या में (णिरयगदी) नरकगति, (किण्हति) कृष्णादि तीन अशुभलेश्यायें (सुक्कं) शुक्ललेश्या (उवसमचरित्त) उपशम चारित्र (खाइयदंसणणाणं) क्षायिक दर्शन, क्षायिक ज्ञान, (खाइयदाणादी) क्षायिक दानादिक (ण) नहीं (हुंति) होते हैं। भावार्थ -पीत और पद्म लेश्या में नरकगति, कृष्णादि तीन अशुभ लेश्यायें, शुक्ल लेश्या, क्षायिक दर्शन, क्षायिक ज्ञान, क्षायिक चारित्र, क्षायिक दानादिक 5 लब्धिये भाव नहीं पाये जाते हैं। . संदृष्टि नं. 75 पीत पद्म लेश्या भाव (39) पीत, पद्म लेश्या में 39 भाव होते है। जो इस प्रकार है - सम्यक्त्व 3, कुज्ञान 3, ज्ञान 4, दर्शन 3, क्षयो.लब्धि 5, · 3 गति (नरकगति रहित), कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 2, संयमासंयम, सरागसंयम, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 1 गुणस्थान आदि के सात होते है । संदृष्टि इस प्रकार है (127) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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