Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur
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गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति
2 ( तिर्यंचगति,
संयमासंयम)
संयमा
संयम
प्रमत्त
संयत
अप्रमत्त
संयत
अपूर्व
करण
अनि.
सवे.
अनि.
अवे.
सूक्ष्म.
उप.
क्षीण
सयोग
केवली
0
1 ( वेदक
सम्यक्त्व)
0
2 (
2 (
3 ( गुणस्थानवत् 28 ( गुणस्थानवत् दे. दे. संदृष्टि 1) संदृष्टि 1)
3 (
13 (
19
33
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"3
33
मनुष्यगति, असिद्धत्व
भव्यत्व)
भाव
29 ( 31 गुणस्थानवत् - 18 (22 गुणस्थानवत् - पीत पद्म लेश्या)
29 ( 31 गुणस्थानवत् दे. संदृष्टि 1- पीत पद्म लेश्या)
29 (उपरोक्त )
28 ( गुणस्थानवत् दे. संदृष्टि 1 )
9 (शुक्ल लेश्या, क्षायिक दानादि चार लब्धि, क्षायिक
चारित्र,
) 25 (
) 22 (
) 21 (
) 20 (
14 (
""
33
99
33
(130)
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>
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}
अभाव
अशुभ 3 लेश्या, देव नरकगति)
18 ( गुणस्थानवत् 22 3 अशुभ लेश्या, नरकगति)
18 ( पूर्वोक्त)
19 ( गुणस्थानवत् 25 5 लेश्या, नरकगति)
19 ( पूर्वोक्त)
22 (28गुणस्थानवत् दे. संदृष्टि 1 - लेश्या 5, नरकगति)
25 (31गुणस्थानवत् दे. संदृष्टि 1 - लेश्या, नरकगति)
26 (32गुणस्थानवत् दे. संदृष्टि 1 - लेश्या 5, नरकगति)
27 (33गुणस्थानवत् दे.
संदृष्टि 1-6 पूर्वोक्त)
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33 (39गुणस्थानवत् दे. | संदृष्टि 1-6 पूर्वोक्त)
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