Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 145
________________ संदृष्टि नं.78 अभव्य जीव भाव (34) अभव्य जीव के 34 भाव होते है जो इस प्रकार - कुज्ञान 3, दर्शन 2, क्षयोपशम लब्धि 5, गति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 31 गुणस्थान एक मिथ्यात्व ही होता है संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति | भाव अभाव मिथ्यात्व |0 34 (उपर्युक्त) नोट • मूल ग्रन्थ में 34 भावों की सारणी उपलब्ध है किन्तु अभव्य जीवों में भव्यजीव संभव नहीं है । अतः भव्यजीव को कम करके भावों की संयोजना करना चाहिये। मिच्छरुचिम्हि यजी (मा) वाचउतीसासासणम्हि बत्तीसा। मिस्सम्हि दु तित्तीसा भावा पुव्वत्तपरिणामा ||108|| मिथ्यारुचौ च भावा चतुस्त्रिंशत् सासने द्वात्रिंशत् । मिश्यावाचा मिश्रे तु त्रयस्त्रिंशत् भावाः पूर्वोक्तपरिणामाः ॥ अन्वयार्थ - (मिच्छरुचिम्हि) मिथ्यात्व गुण स्थान में (चउतीसा) चौतीस (भावा) भाव होते हैं । (सासणम्हि) सासादन गुणस्थान में (बत्तीसा) बत्तीस (मिस्सम्हि) मिश्रगुणस्थान में (तित्तीसा) तेतीस भाव होते हैं तथा इन सभी गुणस्थानों में (पुव्वत्तपरिणामा) पूर्वोक्त कहे गये परिणाम ही होते हैं। मिच्छ मभव्वं वेदगमण्णाणतियं च खाइया भावा॥ ण हि उवसमसम्मत्ते सेसा भावा हवंति तहिं ।।109।। मिथ्यात्वमभव्यं वेदकमज्ञानत्रिकं च क्षायिका भावाः। न हि उपशमसम्यक्त्वे शेषा भावा भवन्ति तत्र || अन्वयार्थ - (उवसमसम्मत्ते) उपशम सम्यकत्व में (मिच्छ मभव्वं) मिथ्यात्व, अभव्यत्व (वेदगमण्णाणतियं) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, अज्ञान तीन (च) और (खाइयाभावा) क्षायिक भाव (ण) नहीं (हवंति) होते हैं (तहिं) वहाँ पर (सेसा) शेष (भावा) भाव होते हैं। भावार्थ - उपशम सम्यक्त्व में मिथ्यात्व, अभव्यत्व, वेदकसम्यक्त्व, (132) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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