Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 147
________________ णाणं दंसण) केवलज्ञान, केवल दर्शन, (खाइयदाणादिया) क्षायिक दानादि (एदे भावा) ये भाव (ण) नहीं (हवंति) होते हैं। भावार्थ -संज्ञी जीवों में केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक दानादि पाँच, ये 7 भाव नहीं होते हैं क्योंकि ये सातों भाव तेरहवें गुणस्थान में प्रकट होते हैं और तेरहवें गुणस्थान में भाव मन का अभाव होने के कारण तेरहवें आदि गुणस्थान वर्ती जीवसंज्ञी असंज्ञी के व्यवहार से रहित होते हैं। भाव मन के सद्भाव के कारण बारहवें गुणस्थान तक ही संज्ञी का व्यवहार देखा जाता संदृष्टि नं.79 मिथ्यात्व भाव (34) सम्यक्त्व मार्गण में मिथ्यात्व मे 34 भाव होते है ये 34 भाव मिथ्यात्व गुणस्थान के भावों के समान ही है । दे. संदृष्टि । गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति मिथ्यात्व 0 भाव अभाव संदृष्टि नं.80 सासादन भाव (32) सासादन में सासादन गुणस्थान के समान ही 32 भावो का कथन समझना चाहिए। दे. संदृष्टि । गुणस्थान भाव व्युच्छित्तिा भाव अभाव मिथ्यात्व | 32 संदृष्टिनं.81 मिश्र भाव (33) मिश्र का कथन मिश्र गुणस्थान के समान ही समझना चाहिए। दे. संदृष्टि 1 गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति | भाव अभाव 2 . मिथ्यात्व 0 (134) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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