Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 138
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति क्षीण 13 ("") सयोग 1 (शुक्ल लेश्या) केवली अयोग के वली 8 ( क्षायिक दानादिक 4 लब्धि, क्षायिक चारित्र, 20 ( मनुष्य गति, असिद्धत्व भव्यत्व ) भाव विशेष- पूर्व में आचार्य महाराज ने 3 गुणस्थान से है । किन्तु यहाँ चतुर्थगुणस्थान से माना है यह विषय विचारणीय है । 33 Jain Education International संदृष्टि नं. 73 केवल दर्शन भाव (14) केवलदर्शन में 14 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं- क्षायिक भाव 9, मनुष्यगति, शुक्ल लेश्या, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व । गुणस्थान अंत के दो होते हैं । गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव > 14 ( उपर्युक्त ) अभाव 21 ( औपशमिक भाव 2, संयमासंयम, सराग 13 ( उपर्युक्त 14शुक्ल लेश्या) संयम, कृष्णादि लेश्या 5, असंयम, कषाय 4, नरकादि 3 गति, लिंग 3) अवधिदर्शन स्वीकार किया 0 1 ( शुक्ल लेश्या) किण्हतिये सुहलेस्सति मणपज्जुवसमसरागदेसजमं । खाइयसम्मत्तूणा खाइयभावा य णो संति ||105 || कृष्णत्रिके शुभलेश्यात्रिकमनःपर्ययशमसरागदेशयमाः । क्षायिक सम्यक्त्वोनाः क्षायिक भावाश्च नो सन्ति || अन्वयार्थ - ( किण्हतियं) कृष्णादिक तीन लेश्याओं में (खाइयसम्मत्तूणा) क्षायिक सम्यकत्व को छोड़कर (सुहलेस्सति) तीन (125) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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