Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

Previous | Next

Page 137
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव अविरत 36 (गुणस्थानवत् दे. | 5 (उपशम चारित्र, (गुणस्थानवत् संदृष्टि 1) क्षायिक चारित्र, मनः दे. संदृष्टि 1) पर्ययज्ञान, सराग संयम, संयमासंयम) देश 26 " 10 " ) 10 (उपशम चारित्र, संयम क्षायिक चारित्र, मनः पर्ययज्ञान, सराग संयम, अशुभ लेश्या 3, असंयम, नरकगति, देवगति) प्रमत्त ०. " ) 310 " ) 10 (उपशम चारित्र, विरत क्षायिक चारित्र, संयमासंयम, अशुभ लेश्या 3, असंयम, नरक गति, तिर्यच गति, देवगति अप्रमत्त |3( " )|31( " )| 10 (उपर्युक्त) विरत । अपूर्वकरण ( " )|28 ( " )|13 (उपर्युक्त 10 + पीत, पद्म लेश्या, वेदक सम्यक्त्व) अनि. स.30 " 28 ( " 013 (उपर्युक्त ) अनि. अ./3 ( " 25 ( " /16 (उपर्युक्त 13 + लिंग 2 " 22 " सूक्ष्म सा. )| 19 (उपर्युक्त 16 + क्रोध, मान, माया) उपशात 26 " ) |21( " ) | 20 (क्षायिक चारित्र, संयमासंयम, सरागसंयम, कृष्णादि 5 लेश्या, असंयम, कषाय, नरकादि 3 गति, लिंग ) (124) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158