Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur
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गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव
अभाव मिथ्यात्व |2 (मिथ्यात्व, | 32 (कुज्ञान 3, दर्शन 17 (उपशम सम्यक्त्व, अभव्यत्व)
2, क्षायो. लब्धि 5, क्षायिक सम्यक्त्व, नरकगति, देवगति, वेदक सम्यक्त्व, ज्ञान कषाय 4,लिंग 3 लेश्या 3, अवधिदर्शन) 6, मिथ्यादर्शन, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3)
सासादन 3 (कुज्ञान 3) 30 (उपर्युक्त 32- 9(उपर्युक्त 7 +
मिथ्यात्व, अभव्यत्व) | मिथ्यात्व, अभव्यत्व)
मिश्र
0
31 (उपर्युक्त 30 - 8 (उपर्युक्त 9 + कुज्ञान कुज्ञान3, + मिश्र ज्ञान | 3 - मित्र ज्ञान 3 - 3, अवधि दर्शन) अवधि दर्शन)
अविरत
34 (ज्ञान 3, दर्शन 15(मिथ्यात्व, अभव्यत्व, (नरकगति, । 3, क्षायो. लब्धि 5, | कुज्ञान 3) देवगति, सम्यक्त्व 3, गति 2, अशुभ कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 3, लेश्या 6, असंयम, असंयम) असिद्धत्व,
पारिणामिक भाव 2)
वेगुव्वं वा मिस्से ण विभंगो किण्हदुगछि दी साणे। संढं णिरियगदिपुणतम्हाअवणीयसंजदेखयऊ।।84|| विगूर्ववत् मिश्रे न विभंगं कृष्णाद्विकच्छित्तिः साने ।
पंढं नरकगतिं पुनः तस्मादपनीय असंयते क्षिपतु ॥ अन्वयार्थ :- (मिस्से) वैक्रियिक मिश्रकाय योग में (वेगुव्वं वा)
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